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लेख
समाज में आप, सर्वप्रिय कैसे हो सकते हैं? स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       सन्तराम
अमेरिका के लोक-व्यवहार-कला के विशेषज्ञ, श्री डेल कारनेगी लिखते हैं कि न्यूयार्क की तेंतीसवीं स्ट्रीट और आठवें एवेन्यू के डाक घर के सामने रजिस्टरी कराने वालों की एक पंक्ति लगी हुई थी। मैं भी उस पंक्ति में खड़ा था। मैंने देखा कि रजिस्टरी क्लर्क अपने काम-लिफाफे तोलने, टिकट देने, रेजगारी निकालने, रसीदें देने-से, प्रति वर्ष वही चक्की पीसते रहने से, तंग आ रहा था। इसलिए मैंने अपने मन में कहा, मैं यत्न करने लगा हूं कि यह युवक मुझे पसन्द करे। यह बात प्रत्यक्ष है कि उसको अपना चाहने वाला बनाने के लिए, मुझे अपने विषय में नहीं, वरन्‌ उसके विषय में कोई मनोहर बात कहनी चाहिए।' इसलिए मैंने अपने मन से पूछा, उसकी कौन-सी चीज ऐसी है, जिसकी मैं निष्कपटता से प्रशंसा कर सकता हूं।' यह ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर देना, विशेषतः अपरिचितों के सम्बन्ध में, कभी-कभी बड़ा कठिन होता है। परन्तु इस दशा में संयोग से यह काम सहज था। मैंने तत्काल कोई ऐसी चीज देखी, जिसकी मैं खूब प्रशंसा कर सकता था।

और जिस समय वह मेरा लिफाफा तोल रहा था, मैंने बड़े उत्साह के साथ कहा, ''सच जानिये, मैं चाहता हूं, मेरे सिर के बाल भी आपके जैसे ही होते।''

यह सुनकर वह चौंका, उसका मुखमण्डल मुस्कराहट से चमकने लगा, और उसने ऊपर दृष्टि उठायी। वह विनीत भाव से बोला, ''यह अब उतने अच्छे नहीं रहे, जितने पहले थे।'' मैंने उसे निश्‍चय कराया कि चाहे इनकी पुरानी शोभा कुछ घट गयी हो, तो भी ये बड़े शानदार हैं। वह बहुत प्रसन्न हुआ। हम थोड़ी देर तक इसी प्रकार मनोहर वार्तालाप करते रहे, और उसने जो अन्तिम बात मुझे कही, वह थी -''कई लोगों ने मेरे बालों की प्रशंसा की है।''

मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि उस दिन जब वह युवक डाक-घर से निकला होगा, तो उसका पैर भूमि पर नहीं पड़ता होगा। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि उस दिन रात को घर जाकर उसने अपनी पत्नी से इसकी चर्चा अवश्य की होगी। मैं शर्तिया कहता हूं कि उसने दर्पण में देखकर अवश्य कहा होगा, ''मेरे बाल बड़े सुन्दर हैं।''

एक बार यही कहानी डेल कारनेगी ने लोगों को सुनायी। बाद को एक मनुष्य ने उनसे पूछा - ''आप उससे क्या लेना चाहते थे?'' इस पर कारनेगी कहते हैं कि ''यदि हम इतने निन्द्य रूप से स्वार्थी हैं कि दूसरे व्यक्ति से बदले में कुछ निचोड़ने का यत्न किये बिना थोड़ी सी प्रसन्नता विकीर्ण नहीं कर सकते अथवा उनकी थोड़ी सी प्रशंसा नहींकर सकते - यदि हमारी आत्मायें झाड़ियों के छोटे बेरों से बड़ी नहीं, तो हमें विफल होना आवश्यक है और हम इसके पात्र हैं।''

''अरे हां, मैं उस युवक से कुछ लेना चाहता था। मैं एक अमूल्य पदार्थ चाहता था। और मुझे मिल गया। मुझ में यह भाव आया कि मैंने उसके लिए ऐसा कुछ किया है, जिसके बदले में वह मेरे लिए कुछ भी करने में समर्थ नहीं। यह एक ऐसा भाव है, जो घटना हो चुकने के उपरान्त देर तक अपनी स्मृति से चमकता और गूंजता रहता है।''

श्री डेल कारनेगी लिखते हैं :-

मैंने रेडियो-नगर के ÷जानकारी' क्लर्क से हेनरी सूवैन के कार्यालय का नम्बर पूछा। वह साफ-सुथरी वर्दी पहने हुए था और जिस ढंग से वह जानकारी वितरण करता था, उस पर उसे अभिमान था। उसने साफ और स्पष्ट रूप से उत्तर दिया - ''हेनरी सूवैन। (विराम) 18वीं मंजिल। (विराम)'' कमरा 1816।''

मैं 18 वीं मंजिल पर जाने के लिए एलीवेटर (ऊपर ले जाने वाली मशीन) की ओर दौड़ा; तब रुक गया और वापस जाकर क्लार्क से बोला, ''जिस सुन्दर ढंग से आपने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया, उसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। आपके शब्द बड़े स्पष्ट और निश्चिन्त थे। आपने एक कलाकार की भांति काम किया और यह एक असामान्य बात है।''

उसका मुखमण्डल प्रसन्नता से चमक उठा। उसने मुझे बताया कि वह प्रत्येक बात के बाद क्यों ठहर जाता था और प्रत्येक वाक्यांश क्यों ठीक-ठीक बोल गया था। मेरे थोड़े से प्रशंसा शब्दों में वह फूल गया, जिससे उसकी नकटाई कुछ ऊंची उठ गयी। जब मैं 18 वें तल्ले पर पहुंचा, तो मेरे मन में यह भाव था कि आज मानवी सुख के सर्वयोग में थोड़ी सी वृद्धि की है।

गुणग्रहिता के इस तत्वज्ञान का उपयोग करने के लिए आपको पहले फ्रान्स में राजदूत बनकर जाने या फल्क क्लब की क्लम्बेक कमेटी का चेयरमैन बनने की आवश्यकता नहीं।

उदाहरणार्थ, यदि होटल की नौकरानी आपके लिए आलू ले आती है, जब कि आपने गोभी मांगी थी, तो हम कहें - ''आपको कष्ट देने का मुझे खेद है। परन्तु मुझे गोभी चाहिए थी।'' वह उत्तर देगी - ''नहीं, कोई कष्ट नहीं।'' और बड़ी प्रसन्नता से गोभी ले आयेगी; क्योंकि आपने उसका सम्मान किया है।

''मुझे खेद है, आपको कष्ट हुआ,'' ''क्या आप कृपा करके -,'' ''क्षमा कीजिये, आपको कष्ट दे रहा हूं,'' ÷धन्यवाद'', इत्यादि जीवन के नीरस एवं कठिन काम को सरल और सरस बना देते हैं- और वे उत्तम शिक्षण की निशानी हैं।

अच्छा, एक दूसरा दृष्टान्त लीजिए। क्या आपने कभी हालकेन का कोई उपन्यास-दि क्रिश्चियन, दि डीमस्टर, दि मैंक्समैन - पढ़ा है? लाखों लोग, अगणित लोग, उसके उपन्यास पढ़ते थे। वह एक लोहार का बेटा था। अपने जीवन में उसने आठ वर्ष से अधिक शिक्षा नहीं पायी थी। फिर भी जिस समय उसकी मृत्यु हुई, उस समय वह संसार में एक सबसे अधिक धनाढ़य साहित्यिक था।

उसकी कहानी इस प्रकार बतायी जाती है : - हालकेन को ग्राम्य गीत और चतुष्पदी कवितायें बहुत अधिक भाती थीं; इसलिए उसने डांटे, गेबरियल रोजट्टी की सारी कविता रट ली। उसने रोजट्टी के कौशलपूर्ण कार्यों की प्रशंसा से भरा हुआ व्याख्यान भी लिखा - और उसकी एक प्रति स्वयं रोजट्टी को भेज दी। रोजट्टी बहुत प्रसन्न हुआ। सम्भवतः रोजट्टी ने अपने मन में कहा, ''जो युवक मेरी योग्यता के विषय में इतनी उच्च सम्मति रखता है, वह अवश्य प्रखर बुद्धि का होगा।'' इसलिए रोजट्टी ने इस लोहार के लड़के को लन्दन आकर उसका सेक्रेटरी बनने को लिखा। हालकेन के जीवन में वह एक परिवर्तन बिन्दु था; क्योंकि अपनी नवीन स्थिति में, उसे तत्कालीन साहित्य शिल्पियों से मिलने का अवसर मिला। उनके उपदेशों से लाभ उठाकर और उनके प्रोत्साहन से अनुप्राणित होकर, उसने एक ऐसा व्यवसाय ग्रहण किया, जिसने उसका नाम सारे संसार में चमका दिया।

आइल आव मैन पर उसका घर, ग्रीवा कासल, संसार के सुदूर प्रदेशों से आनेवाले पर्यटकों के लिए मक्का बन गया, और वह पच्चीस लाख डालर की जागीर छोड़ गया। तो भी - कौन जानता है - यदि वह एक प्रसिद्ध मनुष्य की प्रशंसा में निबन्ध न लिखता, तो वह निर्धन और अज्ञात ही मर जाता।

हार्दिक और निष्कपट गुणग्राहकता की ऐसी ही विराट शक्ति है।

रोजट्टी ने अपने को महत्वपूर्ण समझा। यह कोई अनोखी बात नहीं। प्रायः प्रत्येक मनुष्य अपने को महत्वपूर्ण, बहुत महत्वपूर्ण समझता है।

ऐसे ही प्रत्येक राष्ट्र समझता है।

अमेरिकन अनुभव करते कि वे जापानियों से श्रेष्ठ हैं। परन्तु सच्चाई यह है कि जापानी अपने को अमेरिकनों से बहुत अधिक उच्च समझते हैं। उदाहरणार्थ, एक अनुदार जापानी किसी गोरे पुरुष को जापानी स्त्री के साथ नाचते देखकर क्रोध से तमतमा उठता था।

भारत के हिन्दू अपने को पवित्रता की मूर्ति और यूरोपियनों से श्रेष्ठ समझते हैं। यह उनका अधिकार है, चाहे जो समझें; परन्तु सच्चाई यह भी है कि यूरोप और अमेरिका के लोग इनको गन्दे और असभ्य समझकर अपने भोजनालयों और सिनामाओं में पैर नहीं रखने देते थे।

गोरे लोग अपने को एस्कीमों लोगों से श्रेष्ठ अनुभव करते हैं। यह उनकी इच्छा है; परन्तु क्या आप सचमुच जानना चाहते हैं कि एस्कीमों गोरों को क्या समझते हैं? अच्छा, एस्कीमो लोगों में थोड़े-से निखट्टू ऐसे हैं, जो काम नहीं करते। एस्कीमो उनको ''गोरे मनुष्य'' कहते - यह उनका अत्यन्त तिरस्कार का शब्द है।

प्रत्येक राष्ट्र अपने को दूसरे राष्ट्रों से श्रेष्ठ अनुभव करता है। इससे देशभक्ति उत्पन्न होती है - और साथ ही युद्ध भी।

नग्न सच्चाई यह है कि प्रायः प्रत्येक मनुष्य, जिससे आप मिलते हैं, किसी न किसी रीति से अपने को आपसे श्रेष्ठ अनुभव करता है; और उसके हृदय में पहुंचने का निश्चित मार्ग उसको किसी सूक्ष्म रीति से अनुभव कराना है कि आप उसके महत्व को उसके क्षुद्र जगत्‌ में स्वीकार करते हैं, और सच्चे हृदय से स्वीकार करते हैं।

इमर्सन के कथन को स्मरण रखिये - ''जिस भी मनुष्य से मैं मिलता हूं, वह किसी न किसी बात में मुझसे श्रेष्ठ होता है; और वह बात मैं उससे सीख सकता हूं।''

दुःख की बात यह है कि बहुधा जिन मनुष्यों के पास अपने कार्यों की डींग हांकने के लिए कुछ भी आधार नहीं होता, वे अपनी भीतरी अल्पता के भाव को बाहरी चीत्कार, कोलाहल और अभिमान के सहारे खड़ा करते हैं और ये तीनों बातें बड़ी घृणाजनक और सचमुच जी मचलाने वाली हैं।

महाकवि शेक्सपियर इसी बात को इस प्रकार कहता है - ''मनुष्य, अभिमानी मनुष्य! थोड़ी सी संक्षिप्त प्रभुता का बाना पहनकर ईश्वर के सामने ऐसी ऊटपटांग चालें चलता है कि उन्हें देख देवदूत भी रोने लगते हैं।''

जिन लोगों ने इस सिद्धान्त का उपयोग किया है और उन्हें अद्भुत परिणाम प्राप्त हुए हैं, उनका एक उदाहरण आगे दिया जाता है। यह उदाहरण अमेरिका के अन्तर्गत कुनकिृकट नगर के एक वकील का है।

एक समय वह अपनी पत्नी को साथ लेकर पत्नी के सम्बन्धियों से मिलने लांग आइलैण्ड को गया। पति को अपनी बूढ़ी चाची के साथ बातें करते छोड़ पत्नी अपने तरुण सम्बन्धियों से मिलने चली गयी। पति देखना चाहता था कि गुण-ग्राहिता का क्या प्रभाव पड़ता है, इसलिए उसने पहले उस वृद्धा देवी से अपना प्रयोग आरम्भ करने की सोची। उसने वृद्धा चाची के घर के चारों ओर दृष्टि फिराकर देखा कि कौन सी वस्तु ऐसी है, जिसकी मैं निष्टतापूर्वक प्रशंसा कर सकता हूं।

उसने पूछा, ''यह घर लगभग 1890 में बना था?'' वृद्धा ने उत्तर दिया, ''हां, ठीक उसी वर्ष बना था।''

उसने कहा, ''यह मुझे उस घर की याद दिला रहा है, जिसमें मेरा जन्म हुआ था। यह सुन्दर है, सुनिर्मित है, विशाल है। आप जानती हैं, आजकल लोग ऐसे घर नहीं बनाते।''

वृद्धा देवी सहमत होकर बोली, ''आप ठीक कहते हैं। नवयुवक लोग आजकल सुन्दर घरों की परवाह नहीं करते। वे केवल इतना चाहते हैं कि एक छोटा सा कमरा हो, एक बिजली का पंखा हो, फिर वे अपनी मोटरकार में बे-मतलब घूमते फिरते हैं।''

मधुर स्मृतियों के साथ थर्राते हुए स्वर में वह बोली, ''यह स्वप्न-गृह है। यह घर प्रेम के साथ बनाया गया था। इसे बनाने के पूर्व मेरा पति और मैं वर्षों तक इसके विषय में कपोल-कल्पना करते रहे थे। हमने इसमें किसी स्थपति की सहायता नहीं ली। इसका सारा नक्शा हमने स्वयं तैयार किया था।''

तब उस देवी ने वकील महाशय को अपना घर दिखलाया। वकील ने उन सब सुन्दर दुर्लभ वस्तुओं की हार्दिक प्रशंसा की, जो वह अपने पर्यटनों में इकट्ठी करके लायी थी और जिन्हें वह आयु-पर्यन्त प्यार से रखे रही। पैसले के दुशाले, एक पुराना अंग्रेजी टी-सेट, वेजबुड के चीनी बर्तन, फ्रान्सीसी खाट और कुर्सियां, इटालियन चित्र और रेशमी कपड़े, जो फ्रान्स के ग्राम-निवासों में लटकाये जाया करते थे।

सारा घर दिखलाने के पश्चात वह उस को गराज में ले गयी। वहां, मशीन द्वारा उठाकर लक्कड़ के कुन्दों पर पैकार्ड कार-प्रायः नयी-रखी हुई थी।

वह धीमे से बोली, ''मेरे पति ने मृत्यु से थोड़े दिन पहले इसे खरीदा था। उसकी मृत्यु के बाद से आज तक मैंने कभी इसकी सवारी नहीं की। .... आप मनोहर वस्तुओं की कदर करते हैं, और मैं यह कार आपको देने जा रही हूं।''

वकील ने कहा, ''चाचीजी, आप मुझे बोझ के नीचे क्यों दबा रही हैं? हां, मैं आपकी दानशीलता की प्रशंसा करता हूं; परन्तु इसे स्वीकार करना मेरे लिए सम्भव नहीं। मैं आपका निकट-सम्बन्धी भी हूं। मेरे पास नयी कार है; और आपके कई सम्बन्धी हैं, जो यह पैकार्ड कार लेना पसन्द करेंगे।''

वह क्रोध से चिल्लाकर बोली, ''सम्बन्धी! हां, मेरे सम्बन्धी हैं, जो यह कार लेने के लिए मेरी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं। परन्तु उनको यह न मिलेगी।''

उसने वृद्धा से कहा, ''यदि आप यह उनको देना नहीं चाहतीं, तो आप बहुत सहज में इसे किसी सेकेण्ड हैण्ड चीजें रखनेवाले के हाथ बेच सकती हैं।''

इस पर वह चिल्लाकर बोली, ''इसे बेच दो! क्या आप समझते हैं, मैं यह कार बेच दूंगी? क्या आप समझते हैं कि मैं अजनबियों को उस कार में-हां कार में, जो मेरे पति ने मेरे लिए खरीदी थी - बैठकर बाजार में इधर से उधर घूमते देख सकती हूं? इसे बेचने का विचार मुझे स्वप्न में भी नहीं आ सकता। मैं यह तुम्हें देने लगी हूं। तुम सुन्दर वस्तुओं की कदर करते हो।''

वकील ने यत्न किया कि मैं कार लेना स्वीकार न करुं; परन्तु वह वृद्धा के हृदय को ठेस पहुंचाये बिना ऐसा न कर सका।

यह वृद्धा स्त्री, जो एक विशाल भवन में अकेली रहती थी, जिसके पास पैसले के दुशाले, फ्रान्स की पुरानी कारीगरी की चीजें और उसकी स्मृतियां थीं, थोड़ी-सी गुणग्राहिता की भूखी थी। वह भी कभी सुन्दर और तरुणी थी। उसके घर में भी कभी प्रेम राज्य था। घर को सुन्दर बनाने के लिए उसने सारे यूरोप से चीजें इकट्ठी की थीं। अब, वृद्धावस्था में अकेली रह जाने से, वह थोड़ी-सी मानुषी सहृदयता, थोड़ी सी सच्ची गुणग्राहिता की कामना करती थी - और किसी ने उसे यह नहीं दी। जब, मरुस्थली में झरने की भांति, उसे यह मिल गयी, तो वह मोटरकार के दान से कम किसी दूसरी बात से अपनी कृतज्ञता को यथेष्ट रूप से प्रकट न कर सकी।

कोडक कम्पनी के जार्ज ईस्टमैन ने एक ऐसी पारदर्शक फिल्म का अविष्कार किया, जिससे चल-चित्रों का बनना सम्भव हुआ। उसने दस करोड़ डालर की सम्पत्ति बनायी और अपने को संसार में अतीव प्रसिद्ध व्यापारी बनाया। इन सब विराट् गुणों के रहते भी उसने बहुत थोड़ी कदर की आकांक्षा की।

ईस्टमैन रोचेस्टर नामक स्थान में ईस्टमैन संगीत विद्यालय और किलबोर्न भवन नाम की एक नाटयशाला अपनी माता की स्मृति में बनवा रहा था। न्यूयार्क सुपीरियर सीटिंग कम्पनी का प्रेसीडेण्ट एडमसन इन मकानों के लिए थियेटर की कुर्सियां मुहैया करने का आर्डर लेना चाहता था। फोन करके एडमसन ने ईस्टमैन को रोचेस्टर में मिलने के लिए समय नियत करा लिया।

जब एडमसन वहां पहुंचा, तो बिचौले ने कहा, ''मैं जानता हूं, आप यह आर्डर लेना चाहते हैं; परन्तु मैं आपको अब स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि जार्ज ईस्टमैनका पांच मिनट से अधिक समय न लेना। वह बड़ी सख्त पाबन्दी रखनेवाला व्यक्ति है। उसके पास समय बिलकुल नहीं। इसलिए अपनी कहानी शीघ्रता से सुनाकर बाहर आ जाइये।''

जब उसे कमरे में ले जाया गया, तो वह क्या देखता है कि ईस्टमैन अपने डेस्कपर पड़े हुए कागजों के ढ़ेर पर झुका हुआ है। तत्काल ईस्टमैन ने आंखें उठाकर देखा, अपना चश्मा उतारा और बिचौले एवं इडमसन की ओर यह कहते हुए बढ़ा, ''सज्जनो, नमस्कार; कहिये, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं।''

बिचौले ने दोनों का परिचय कराया। तब एडमसन बोला -

श्री0 ईस्टमैन, जितनी देर हमें बाहर आपकी प्रतीक्षा में रहना पड़ा, उतनी देर मैं आपके अफिस की प्रशंसा ही करता रहा हूं। यदि मेरे पास ऐसा कमरा हो, तो मैं स्वयं इसमें बैठकर काम करना पसन्द करुं। आप जानते हैं कि मेरा व्यवसाय घर के भीतर लकड़ी का सामान बनाना है। मैंने सारे जीवन में इससे अधिक सुन्दर कार्यालय नहीं देखा।

जार्ज ईस्टमैन ने उत्तर दिया -

आपने मुझे एक ऐसी बात का अनुभव कराया है, जिसे मैं प्रायः भूल गया था। यह सुन्दर है। जब तक यह पहले पहले बना था, तो मुझे बड़ा आनन्द आया करता था। परन्तु अब मैं जब यहां आता हूं, तो सैंकड़ों दूसरी चीजों की चिन्ता मेरे मन में रहती है और कभी-कभी तो कई-कई सप्ताह तक मैं इस कमरे को देखता तक नहीं।

एडमसन ने जाकर एक चौखटपर अपने हाथ को रगड़ते हुए कहा, ''यह अंग्रेजी बलूत की लकड़ी है न? इटालियन बलूत से इसकी बनावट थोड़ी भिन्न है।''

ईस्टमैन ने उत्तर दिया, ''हां, यह बाहर से मंगायी हुई अंग्रेजी बलूत की लकड़ी है। मेरे एक मित्र को बढ़िया लकड़ी की बहुत अच्छी पहचान है। उसी ने यह मेरे लिए चुनी थी।''

तब ईस्टमैन ने उसे सारा कमरा दिखलाया और बताया कि ये अनुपात, यह रंग, काठ में यह हाथ की खुदाई और दूसरी चीजें, सब मेरी ही सुझायी हुई हैं।

जब वे लकड़ी के काम की प्रशंसा करते हुए कमरे में धीरे-धीरे घूम रहे थे, तो वे खिड़की के सामने जाकर रुक गये और जार्ज इस्टमैन ने, अपने विनीत एवं मधुर ढंग से, कुछ संस्थानों-की ओर संकेत किया, जिनके द्वारा वह मनुष्य समाज को सहायता देने का यत्न कर रहा था - रोचेस्टर का विश्वविद्यालय, बड़ा अस्पताल, होम्योपैथिक हास्पीटल, फ्रेंण्डली होम, शिशु चिकित्सालय।

मनुष्य समाज के कष्टों को कम करने के लिए जिस आदर्श रीति से वह अपनी सम्पति का उपयोग कर रहा था, उसके लिए एडमसन ने उसे भूरि-भूरि बधाई दी। तत्काल जार्ज ईस्टमैन ने एक कांच की अलमारी का ताला खोला और अपना एकमात्र चित्र लेने का केमरा निकाला।

व्यापार आरम्भ करते समय उसे जो उद्योग करना पड़ा था, उसके सम्बन्ध में एडमसन ने उससे सविस्तार प्रश्न किये। ईस्टमैन ने अपने बचपन की दरिद्रता का वर्णन सच्चे भाव से किया और बताया कि किस प्रकार उसकी विधवा माता एक विश्रान्ति-गृह (बोर्डिंग हाउस) चलाती थी और वह आप एक इन्श्योरेन्स के कार्यालय में बीस-पच्चीस रुपये का क्लर्क था। दरिद्रता का भय दिन-रात उसका पीछा न छोड़ता था। उसने पर्याप्त धन कमाने का निश्चय किया, ताकि उसकी माता को विश्रान्ति-गृह में घोर श्रम न करना पड़े। एडमसन ने उसपर और प्रश्न करके उससे और कई बातें निकलवा लीं जिस समय ईस्टमैन सूखे फोटोग्राफिक प्लेटों के सम्बन्ध में अपने प्रयोगों का वर्णन कर रहा था, उस समय वह बडे+ ध्यान के साथ उसकी बातें सुन रहा था। उसने बताया कि मैं किस प्रकार एक कार्यालय में दिन-भर काम करता था और कभी-कभी सारी-सारी रात प्रयोग करता रहता था, बीच में थोड़ी-थोड़ी झपकी ले लेता था, जब कि मेरे रासायनिक पदार्थ काम कर रहे होते थे, कभी-कभी सोते जागते बहत्तर-बहत्तर घण्टे एक कपड़े पहने रहता था।

जेम्स एडमसन ने ईस्टमैन के कार्यालयों में दस बजकर बीस मिनट पर प्रवेश किया था और उसे चेतावनी दी गयी थी कि पांच मिनट से अधिक समय न लेना; परन्तु एक घण्टा बीत गया, दो घण्टे बीत गये। वे अभी तक भी बातें कर रहे थे।

अन्ततः जार्ज ईस्टमैन ने एडमसन को सम्बोधन करके कहा, ''पिछली बार जब मैं जापान गया, तो वहां से कुछ कुर्सियां खरीद लाया और उन्हें लाकर अपनी बरसाती में रखा। परन्तु धूप से उनका रंग-रोगन उखड़ गया। इसलिए मैं दूसरे दिन नगर में जाकर कुछ रंग-रोगन ले आया और कुर्सियों पर आप रोगन किया। क्या आप देखेंगे कि मैं कुर्सियों का कैसा रंग-रोगन कर सकता हूं? बहुत अच्छा। मेरे घर चलिये और मेरे साथ भोजन कीजिये। वहां में आपको दिखाऊंगा।''

भोजन के अनन्तर ईस्टमैन ने एडमसन को जापान से लायी हुई कुर्सियां दिखायीं। वे चार-पांच रुपये प्रति कुर्सी से अधिक मूल्य की न थीं, परन्तु जार्ज ईस्टमैन, जिसने व्यापार में दस करोड़ डालर पैदा किये थे, उनपर गर्व करता; क्योंकि उसने स्वयं उनमें रंग-रोगन किया था।

ईस्टमैन ने नब्बे हजार डालर की कुर्सियों का आर्डर दिया। आप जानते हैं, यह आर्डर किसको मिला - जेम्स एडमसन को अथवा उसके किसी प्रतिद्वन्द्वी को?

उस समय से लेकर ईस्टमैन की मृत्यु तक, वह और जेम्स एडमसन घनिष्ट मित्र बने रहे।

हमें गुणग्राहिता के इस जादू भरे पारस पत्थर का प्रयोग कहां से आरम्भ करना चाहिए? क्यों न अपने ही घर से आरम्भ किया जाए? कोई दूसरा स्थान ऐसा नहीं, जहां इसकी अधिक आवश्यकता हो- जहां इसकी अधिक अपेक्षा की जाती हो। आपकी पत्नी में अवश्य कई अच्छे गुण होंगे- या कम से कम कम किसी समय आप उसमें वह गुण समझते थे, अन्यथा आप उसे कभी विवाह न करते। परन्तु उसके आकर्षण की प्रशंसा किये आप को कितनी देर हुई? कितनी देर?? कितनी देर???

डोरथी डिक्स का एक लेख एक पत्र में छपा था। उसमें उसने लिखा था कि मैं दुलहिनों को दिये जाने वाले उपदेश सुन-सुनकर थक गयी हूं। मैं चाहती हूं कि कोई दूल्हा को भी एक ओर ले जाकर यह छोटा सा उपदेश देः-

जब तक तुम ब्लोर्न स्टोन का चुम्बन न कर लो, तब तक विवाह न करो। विवाह पूर्व स्त्री की प्रशंसा करना एक प्रवृत्ति की बात है। परन्तु विवाह करने के बाद उसकी प्रशंसा करना एक आवश्यकता की-और व्यक्तिगत रक्षा की-बात है। विवाह अकपटता का स्थान नहीं। यह कूटनीति का क्षेत्र है।

यदि आप प्रत्येक दिन शान्ति से बिताना चाहते हैं, तो अपनी पत्नी के घरेलू काम में कभी दोष न निकालो या उसके काम में और अपनी माता के काम में कभी द्वेषोत्पादक तुलना न करो। परन्तु इसके विपरीत सदा उसके गार्हस्थ्य जीवन की प्रशंसा करते रहो और प्रकट रूप से अपने को धन्यवाद दो कि आपको एक ऐसा दुर्लभ स्त्री-रत्न मिला है, जिसमें सरस्वती, रति और सीता के सभी गुण विद्यमान हैं। रोटी जल कर चाहे कोयला हो गयी हो और दाल चाहे मारे नमक के मुंह में न जा सकती हो, शिकायत मत करो। केवल इतना कहिये कि आज भोजन पहले जितना स्वादिष्ट नहीं, फिर वह आपके लिए मन-भाता भोजन तैयार करने में अपनी बलि तक दे देगी। यह काम बहुत अकस्मात्‌ ही न आरम्भ कर दो-नहीं तो उसे संदेह हो जायेगा।

परन्तु आज रात, या कल रात, उसके लिए कुछ फूल या मिठाई लाइये। केवल इतना ही न कहिये, ''हां, मुझे अवश्य यह करना चाहिए।'' इसे कीजिये। इसके अतिरिक्त उसके साथ मुस्कराओ और प्रेम के कुछ शब्द भी कहो। यदि अधिक पति और अधिक पत्नियां ऐसा किया करें, तो घर में कभी खट-पट न हो।

क्या आप जानना चाहते हैं कि क्या उपाय करना चाहिए, जिससे स्त्री आपसे प्रेम करने लगे? सुनिये, उसका रहस्य यह है। यह बहुत अच्छा गुर है। यह मेरा विचार नहीं। मैंने श्रीमती डोरथी डिक्स से लिया है। एक बार उसने एक बहुपत्नियां करने वाले पुरुष से भेंट की थी। वह पुरुष तेईस स्त्रियों के हृदय और सम्पत्ति लूट चुका था। (और हां, साथ ही यह भी बता दूं कि डोरथी ने उससे जेल में भेंट की थी।) जब डोरथी ने उससे पूछा कि तुम्हारे पास वह कौन योग है, जिसके कारण स्त्रियां तुमसे प्रेम करने लगती हैं, तो उसने कहा कि इसमें कोई चालाकी नहीं; आपको केवल इतना करना चाहिए कि स्त्री के साथ उसके अपने विषय में बातें कीजिए।

और यही गुर पुरुषों के साथ भी काम देता है। ब्रिटिश साम्राज्य का विलक्षण प्रधानमन्त्री डिजरेली कहा करता था, ''किसी पुरुष के साथ उसके अपने विषय में बातें कीजिये, वह घण्टों आपकी बातें सुनता रहेगा।''

इसलिए यदि आप लोगों के प्यारे बनना चाहते हैं और तुरन्त बनना चाहते हैं, तो नियम यह है - दूसरे व्यक्ति को महत्वपूर्ण अनुभव कराइये - और सच्चे हृदय से कराइये।

(यू.एन.एन.)