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विविध
जब तोप से किया जाता था प्रचार स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
हिटलर ने अपनी पुस्तक ''मीन केम्फ'' में लिखा है. चतुराई से यदि लगातार प्रचार किया जाय, तो लोगों को यह विश्वास करने के लिए तैयार किया जा सकता है कि स्वर्ग नरक है या उन्हें यह विश्वास दिलाया जा सकता है कि स्वर्ग में बहुत बुरी अवस्था है! ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो कम झूठ की अपेक्षा अधिक झूठ को पतियाने लग जाते हैं! विश्वयुद्व में जर्मन अधिकारी कुछ इसी नीति से काम ले रहे थे! मिथ्या प्रचार द्वारा वे अक्सर अपने मतलब की बात जान लेने का प्रयत्न भी करते! यह इस तरह किया जाता।

यु+द्ध आरम्भ होने के कुछ समय बाद एक दिन जर्मन रेडियो ने प्रश्न किया. 'आर्क रायल' जहाज कहां है? रेडियो ने दावा किया कि जर्मन बम्ब बरसाने वाले जहाज ने उस पर उत्तरी सागर में आक्रमण किया, जिसे सरकार ने छिपाया है! असलियत यह है कि आर्क रायल जहाज सर्वथा सुरक्षित था, फिर भी जर्मन रेडियो रोज इसी प्रश्न को दुहराता था कि आर्क रायल कहां है? इसके बाद जर्मन रेडियो ने ''हुड'' ''रिपल्स'' आदि ब्रिटिश जहाजों के डुबाये जाने का मिथ्या दावा किया! परन्तु इस सारे मिथ्या प्रचार में जर्मनो का उद्देश्य यह था कि किसी तरह इन जहाजों के स्थान का पता लग जाये! नाजियों ने यह सोचा था कि ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जर्मन दावे का खंडन किये जाने से इन जहाजों का स्थान मालूम हो जायेगा! तत्काल खण्डन करने का अर्थ यह होता कि इन जहाजों ने रेडियो द्वारा ब्रिटिश जल सेना के विभाग को अपने विषय में कोई सूचना दी है और वे समुद्र में नहीं किसी बन्दरगाह में हैं, क्योंकि कोई जहाज युद्ध काल में जब समुद्र में होता तो उसके रेडियो में ताला लगा रहता, जिससे किसी के कुछ सुनने की नौबत ही न आये! ब्रिटिश अधिकारियों ने जर्मनों की चाल ताड ली और जर्मनों की सारी योजना बेकाम हो गयी!

झूठे दावों का खण्डन किये जाने से महत्वपूर्ण विषयों की आवश्यक जानकारी प्राप्त करना विश्व युद्ध की एक विशेषता हो गयी थी!

जर्मन केन्द्रों पर ब्रिटिश हवाई जहाजों द्वारा बम बर्षा होने पर जर्मन अधिकारी ब्रिटिश विमानों की क्षति को बहुत बढ़ा चढ़ाकर इसलिए दिखलाते थे कि ब्रिटिश अधिकारी उसका खण्डन करें और तब वे यह पता लगा सकें कि जर्मन रक्षा. व्यवस्था कितनी चुस्त है!

जर्मन पनडूब्बियों का पता लगाने के लिए भी इसी चाल से काम किया गया! नाजी अधिकारियों ने दावा किया कि एक पनडुब्बी कई साहसपूर्ण कार्य करने के बाद कील पहुंचने में समर्थ हो गयी है! यह सब मनगढन्त बात थी! असल में जर्मन अधिकारियों को उस पनडुब्बी के विषय में कोई समाचार न मिला था और वे जानना चाहते थे कि उसकी क्या हालत हुई!

एक बार की बात है, जर्मनों ने एक युद्ध बन्दी को रेडियो के सामने खडा कर दिया और उसकी रेजिमैन्ट का नाम कहलाया, जिससे ब्रिटिश अधिकारी खण्डन करें कि अमुक रेजिमैन्ट क्षेत्र में नहीं है। जर्मन उस रेजिमैन्ट की स्थिति का पता लगाना चाहते थे, परन्तु इसमें भी उन्हे सफलता नहीं मिली।

युद्ध के आरम्भ में जब वारसा के नागरिक बड़ी वीरता से जर्मनों से लड़ रहे थे, एक दिन उन्हें रेडियो द्वारा यह सुनने को मिला- मानो कोई पोलिश भाषा में ब्रिटिश रेडियो पर बोल रहा हो- ''300 ब्रिटिश हवाई जहाज तुम्हारी सहायता करने के लिए पहुॅंच रहे हैं, वे रास्ते में है! अन्त तक डटे रहो!''वारसा में नागरिकों ने यह भी सुना कि ''ब्रिटिश जलसेना बाल्टिक क्षेत्र में घुस गयी है और तटवर्ती जर्मन नगरों पर गोले गिरा रही है!'' पोलों ने यह सोचकर हिम्मत बांधी कि आखिर सहायता पहुंच रही है! कुछ दिनों बाद उन्होने रेडियो पर यह भी सुना कि फ्र्रांन्सीसियों ने सीगफीड लाइन को तोड़ दिया! इन सब समाचारों से पोलों में आशा का संचार हुआ और वे जी होमकर कुछ दिनों तक लडे+, परन्तु मद्द नहीं पंहुची! उत्साह वर्द्धक सन्देशों का अब आना बन्द हो चुका था! उसी समय नाजी अधिकारियों ने दूसरा राग आरम्भ किया-''लड़ाई जारी रखने में कोई लाभ नहीं है! पोलैण्ड खाली हो गया है!''

वारसा के नागरिकों को इससे बड़ी निराशा हुई और इसका परिणाम वही हुआ, जो उस परिस्थिति में हो सकता था! उन्हें पता न था कि ब्रिटिश रेडियों स्टेशन के नाम पर वह सब जर्मनों का मिथ्या प्रचार था! महायुद्ध में प्रचार के साधन इतने सुलभ नहीं थे, परन्तु प्रचार-कार्य का महत्व उस समय भी कम नहीं समझा जाता था।फ्रान्सीसियों ने एक प्रकार का हाथ का बम तैयार किया था, जिसमें 500 पर्चे रहते थे! इसे वे जर्मन खाइयों में फेंक देते थे! अंगरेजों ने प्रचारिका-तोप तैयार की थी, जो कागजी गोलों को शत्रु देश में दस मील दूर तक फेंक सकती थी! पर्चो के साथ बैलून उड़ाये जाते थे और अक्टूबर 1918 में ब्रिटिश हवाई जहाजों ने 10 लाख पर्चे जर्मनी में गिराये थे, जिनसे जर्मन जनता को पता चला कि जर्मन सेनाओं को किस तरह हारना पड़ रहा है! जर्मन अधिकारियों ने अपनी हार की घटनाओं पर पर्दा डाल रखा था! इसलिए जब जर्मनों को असलियत मालूम हुई, सेना पर से उनका विश्वास उठ गया, उनमें निराशा फैल गयी और अकस्मात्‌ हार हो गयी!