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विविध
साड़ी का कटा कोना और हो गया तलाक स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       शंकर सहाय सक्सेना
भारतवर्ष में भीलों से अधिक प्रञति पर निर्भर रहने वाली आधुनिक सभ्यता से दूर और शहरी लोगों को चकित करने वाली दूसरी जाति नहीं है। भील तो मानो प्रञति की गोद में ही खेलने के लिये उत्पन्न हुआ है। राजपूताना, म8य भारत, मुम्बई, बड़ौदा तथा ग्वालियर के इलाकों में भील पहाड़ी जंगलों में पाए जाते हैं। यदि देखा जाए तो दक्षिण राजपूताना, दक्षिण- पश्चिम म8य भारत तथा मुम्बई का खानदेश का भाग वस्तुतः भील प्रदेश है।

भीलों के विषय में किम्बदंती यह है कि वे उनर भारत से आकर बस गए, किन्तु सच तो यह है कि भील ही इन देशों के प्राचीन निवासी हैं। उनर भारत के हिन्दू राज्य मुसलमानों के आव्मण से जब नष्ट हो गए, राजपूत राजा अपने सहायकों को लेकर इन ऊबड़-खाबड़ तथा दुरूह स्थानों में आकर बस गए। राजपूतों के उदय के पूर्व इन प्रदेशों में भीलों के शक्तिशाली जनतंत्र मौजूद थे। यह बहुत सी रियासतों के नामों से सिद्ध होता है। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, मेवाड़, बूंदी, कोटा भील नाम हैं। बहुत से राजपूत राज्यों में जहां भीलों की संख्या यथेष्ट है, यह प्रथा चली आती है कि नए शासक के सिंहासन पर बैठते समय सबसे पहले भीलों का सरदार उसके माथे पर टीका लगाता था। इसके एक नहीं, अनेक प्रमाण हैं कि राजपूत राज्यों की स्थापना के पूर्व इन प्रदेशों के स्वामी भील थे और उनके जनतंत्र स्थापित थे। यह समझना भूल होगी कि भील जाति में सैनिक गुण नहीं है। भील सेनाओं को देखकर कोई भी कह सकता था कि उनमें अच्छे सैनिक के सभी गुण मौजूद थे। परन्तु उनके ऊपर राजपूतों का प्रभुत्व इसलिये स्थापित हो गया कि उनके पास युद्ध के वे सा8ान और वह युद्ध कला नहीं थी जो राजपूतों के पास थी। राजपूतों के विजयी होने का फल यह हुआ कि भील और भी घने जंगलों तथा ऊबड़-खाबड़ प्रदेश में जा बसे। फिर भी भीलों का जातीय संगठन नष्ट नहीं हुआ।

भील गांव बसाकर नहीं रहते। ये पृथक-पृथक टेकरियों पर मकान बनाकर रहते हैं। एक ही गोत्र के भील एक प्रदेश में टेकरियों पर अपनी झोंपड़ियां बना लेते हैं। भीलों में एक अनोखी प्रथा यह है कि जहां किसी लड़के ने अपना विवाह कर लिया कि फिर वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहता, वह पास ही किसी दूसरी टेकरी पर अपनी पृथक झोंपड़ी बना लेता है। झोंपड़ियों के समीप ही उनके खेत होते हैं। भीलों के खेत कम उपजाऊ होते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उपजाऊ भूमि उन्हें नहीं मिलती। फिर भील स्वभाव से अच्छा किसान नहीं होता। एक स्थान विशेष के भीलों की झोंपड़ियों

प्रत्येक भील का एक नेता होता है जिसे गमेती कहते हैं। भील गमेती को अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं और उसकी आज्ञानुसार कार्य करते हैं। भीलों में गजब की एकता और संगठन है। जब कभी किसी आपनि की संभावना होती है तो ढोल बजाते ही भील आश्चर्यजनक शीघ्रता से इकप्े हो जाते हैं। कहीं-कहीं आपनि के समय भील किलकारी देते हैं। प्रत्येक टेकरी का भील पासवाली टेकरी के भील को किलकारी से सूचना दे देता है और चारों ओर से भील आ आकर इकप्े हो जाते हैं।

भील से अ8िाक निर्8ान जाति शायद ही संसार में दूसरी रही हो। उनके झोंपड़े अ8िाकतर अं8ोरे होते हैं। झोंपड़े के एक भाग में कुटुम्ब के लोग रहते हैं और दूसरे भाग में उसके पशु रहते हैं। भील पशुओं को चुराना अपना जन्मसिद्ध अ8िाकार समझता है। पशुओं को चुराना वह बुरा नहीं मानता, परन्तु राजपूताने के भील गाय नहीं चुराते। झोंपड़ों में ही लकड़ी लगाकर छत के समीप मचान बन देते हैं और उसी में चारा रख लेते हैं। भील जंगली वस्तुओं को एकत्र करने के अतिरिक्त खेती भी करता है, किन्तु उसके खेतों पर मकई के अतिरिक्त और कुछ उत्पन्न नहीं होता। वस्तुतः जंगल ही भीलों के निर्वाह का मुख्य सा8ान है। झोंपड़े में कुछ मि6ी के बर्तन, खाना बनाने के लिये एक या दो 8ाातु के लोटे और कुछ फटे चीथड़े, कभी यही उसकी सारी सम्पनि होती थी। निर्8ानता का भील से स्थायी गठबं8ान हो गया। जाड़े में भील पुरुष अपनी 8ाोती और स्त्रियां अपनी ओढ़नी ओढ़कर बहु8ाा नंगे ही सो जाते थे।

भील का भोजन भी उसकी निर्8ानता का सूचक रहा है। अ8िाकांश कूरी, समा, चैना, कोदो इत्यादि जंगल में उत्पन्न होने वाला अनाज और मक्का ही उसका मुख्य भोजन है। गेहूं केवल विवाह तथा त्यौहारों के अवसर पर खाया जाता रहा है। भीलों का मुख्य भोजन राबड़ी क्कमठे में उबला हुआ अनाजत्र् है। अच्छे समय में उसे दिन में दो बार भोजन मिल जाता था किन्तु सा8ाारणतः उसे एक ही बार भोजन नसीब होता था। यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि विवाह हो जाने पर भील युवक अपना घर अलग बसाता है किन्तु पैतृक सम्पनि का बटवारा उस समय तक नहीं होता, जब तक सब भाइयों का विवाह न हो जाए। भील स्त्रियां マंचा घाघरा, कंचुकी और डुपप पहनती हैं। पैरों में पीतल के मोटे कड़े पहनती हैं।

भीलों में विवाह बड़ी उम्र में होता है। वर के माता-पिता को व8ाू के अभिभावकों को 5000 रुपये के लगभग तानतेह या दापा देना पड़ता है। जब तक इस रकम को चुकाने का प्रबं8ा न हो, विवाह होना सम्भव नहीं है। लड़कियों के माता-पिता यथेष्ट रकम पाने के लालच से लड़कियों की शादी जल्दी नहीं करते। इसका परिणाम यह होता है कि विवाह के इच्छुक युवक को कर्ज लेना पड़ता है। भीलों की भीषण कर्जदारी का मुख्य कारण दापा ही है। किन्तु इससे एक लाभ यह होता है कि जब तक भील युवक कमाने योग्य नहीं हो जाता, अक्सर विवाह नहीं करता।

भीलों में युवक-युवतियों को विवाह से पूर्व पारस्परिक सम्पर्क में आने की छूट होती है किन्तु विवाह को तय करना अभिभावकों का एकमात्र अ8िाकार होता है। यदि कोई भील युवक और युवती आपस में प्रेम करते हों, किन्तु दापा न दे सकने के कारण अथवा अन्य किसी कारण से युवती के माता-पिता उसका विवाह प्रेमी के साथ नहीं करना चाहते हों तो दोनों प्रेमी स्वयं अपना विवाह कर लेते हैं। इस प्रकार का विवाह कई तरह से होता है। प्रेमी अपनी प्रेयसी को अपनी पत्नी कहकर उसकी कलाई पकड़ लेता है और वे दोनों विवाहित हो जाते हैं। दूसरा तरीका यह है कि दोनों प्रेमी एक दूसरे का हाथ पकड़कर नदी पार करते हैं। यदि वे सकुशल नदी पार कर गए तब तो वे विवाहित मान लिये जाते हैं और यदि लड़की के पिता ने उन्हें बीच में ही पकड़ लिया तो लड़की पिता की मानी जाती है। तीसरा ढंग यह है कि प्रेमी युवक अपनी प्रेयसी को लेकर कुछ समय के लिये छिपकर कहीं चला जाता है। कहीं-कहीं यह भी प्रथा है कि प्रेमी अपनी चहेती को उसके घर से माता-पिता के विरो8ा करने पर उठा लाए और यदि ऐसा करने में वह सफल हो जाता है तो वह लड़की का पति मान लिया जाता है। परन्तु प्रत्येक दशा में युवक को लड़की के पिता को कुछ रुपये और एक गाय देनी पड़ती है, नहीं तो झगड़ा होता है।

भीलों में वि8ावा विवाह प्रचलित है, किन्तु वि8ावा से विवाह करने का पहला अ8िाकार मृत पति के भाई को होता है। जब मृतक के संस्कार हो चुकते हैं और जाति भोज होता है, तो जाति के पंच मृत पति के छोटे भाई का चादरा उसकी वि8ावा स्त्री को उढ़ा देते हैं और वह अपने देवर की पत्नी हो जाती है। किन्तु भील स्त्रियां बहुत ही स्वतंत्र प्रञति की होती हैं। यदि वि8ावा अपने देवर को अपना पति नहीं बनाना चाहती तो वह उस कपड़े को ओढ़ने से इनकार कर देती है और अपनी पसन्द के भील से विवाह कर लेती है। कुछ प्रदेशों में नवीन पति को वि8ावा के स्वर्गीय पति के स्वजनों को एक बकरा देना पड़ता है।

भीलों में घर-जमाई की प्रथा भी बहुत अ8िाक प्रचलित है। यदि कोई युवक दापे की रकम देने में असमर्थ होता है, तो अपने भावी श्वसुर के यहां रहकर कुछ वर्षों तक उसका काम करता है। सा8ाारणतः सगाई करते समय लड़की की सम्पनि नहीं ली जाती, किन्तु यदि वह प्रस्तावित वर को पसन्द नहीं करती, तो अपने मनचाहे युवक के साथ घर से निकल जाती है। भील स्त्रियों का अपने पति को छोड़कर अपने प्रेमियों के साथ चला जाना सा8ाारण बात है। यदि विवाह हो भी जाता है तो प्रेमी विवाहित प्रेयसी को उसके घर से निकाल ले जाता है। भागी हुई पत्नी का पति अपने प्रतिद्वंद्वी से वे8ा में युद्ध करता है या उसे मार डालता है अथवा उसके घर में आग लगा देता है। इस प्रकार वह अपने प्रतिद्वंद्वी को पत्नी लौटाने पर विवश कर देता है। परन्तु यदि वह इस प्रकार के हिंसक कार्य करता है तो उसे हर्जाना नहीं मिलता। नहीं तो पंचायत कुछ सौ रुपये तक हर्जाना दिला देती है और पत्नी अपने नवीन प्रेमी के पास ही रहती है। यदि नवीन प्रेमी पत्नी को लौटाना स्वीकार करता है तो नाम मात्र का हर्जाना देना पड़ता है। भीलों की कर्जदारी का एक कारण इस प्रकार दूसरों की स्त्रियों को भगाना भी है और यह बहुत प्रचलित है।

भीलों में तलाक की प्रथा भी है। यदि पति पत्नी के चरित्र पर संदेह करता है अथवा उसके डांकनी होने का संदेह होता है तो पति पत्नी को एक नई साड़ी पहनाकर उसके कोने को फाड़ देता है, बस तलाक की रस्म पूरी हो जाती है। भील स्त्रियों को भी तलाक देने का अ8िाकार है। यदि पुरुष उसे खाने पीने को नहीं दे सकता, उसके साथ दुर्व्यवहार करता है अथवा नपुंसक है तो स्त्री उसे तलाक दे सकती है।

भीलों में स्त्री की बहुत इज्जत की जाती है। भील स्त्रियों में अत्यंत साहस और वीरता होती है। युद्ध के समय वे अपने पक्ष के लोगों के शवों तथा घायल योद्धाओं को सराहती हैं, उनकी सेवा करती हैं, अपने पक्ष के लोगों को भोजन पानी देती हैं और शत्रु के तीर बीन बीनकर अपने पक्ष के योद्धाओं को देती रहती हैं। भीलों की भाषा में स्त्री को भायेर कहते हैं। सा8ाारणतः घरों में स्त्रियां लगभग सारे काम करती हैं। घरों की मरम्मत करना, आटा पीसना, दूर से पानी भरकर लाना, भोजन तैयार करना, जंगल से लकड़ी लाना इत्यादि। खेती में भी वे अपने पति का हाथ बंटाती है। केवल जुताई तथा अनाज की सफाई पुरुष करते हैं और शेष सभी कार्य स्त्रियां ही करती हैं। भील स्त्री, पुरुष की अपेक्षा बहुत परिश्रमी और कुशल होती है।

भील स्त्रियां बातचीत करने में अत्यंत कुशल और व्यंगप्रिय होती हैं। यद्यपि वे अपने बड़ों से मुंह छिपाती हैं किन्तु बातें करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। व्यंग करना तो उनका स्वाभाविक गुण है, किन्तु उनके व्यंग बड़े भँे और अशिष्ट नहीं होते। व्यंग करना भील स्त्रियों का स्वाभाविक गुण है। अपने श्वसुर से भी व्यंग करने में वे संकोच नहीं करतीं। किन्तु भील स्त्रियां अपने बड़ों को अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखती हैं। भीलों में नाचने की प्रथा बहुत प्रचलित है, उनका नाच एक अनोखा दृश्य उत्पन्न कर देता है। नाच में स्त्री और पुरुष साथ-साथ नाचते हैं। भील स्त्रियां अच्छे नाचने वाले को ही अपना पति बनाना प्रायः पसन्द करती हैं। नाचते समय भील स्त्री-पुरुषों के चेहरों को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उनसे अ8िाक सुखी व्यक्ति संसार में कोई भी नहीं है। जब कभी भील स्त्री पुरुष समीपवर्ती बस्तियों में घास या लकड़ी बेचने जाते हैं तो आगे आगे स्त्रियां ओर पीछे-पीछे पुरुष चलते हैं। कभी-कभी तो ऐसा मालूम होता है कि इस अनोखी जाति की प्रथाएं पूर्वीय देशों की अपेक्षा पश्चिमीय देशों से अ8िाक मिलती-जुलती हैं। भील डांकनी, टोने और शकुनपर बहुत विश्वास करते हैं। डांकनियां भील प्रदेशों में सर्वत्र पायी जाती हैं। अ8िाकतर वे बूढ़ी स्त्रियां ही होती हैं किन्तु जवान स्त्रियां भी उनकी सहायिका बनकर काम करती हैं। भीलों में यह प्रचलित विश्वास है कि जिसको डांकनी लग जाती है वह सूख-सूखकर मर जाता है, क्योंकि वह उस व्यक्ति के कलेजे को खा लेती है। कहा जाता है कि डांकनी जादू-टोने के अतिरिक्त आंखों से ही खून चूस सकती है। यदि किसी व्यक्ति को यह संदेह होता है कि उसके पशु अथवा कुटुम्ब के किसी व्यक्ति को डांकनी लग गई है तो वह बरवा या भोंपा के पास जाता है और वह उसका उपचार करता है।

भील शकुन को बहुत मानता है और कभी उसकी अवहेलना नहीं करता। यदि किसी यात्री के रास्ते से सांप निकल जाए तो वह वापिस लौट जाता है। किसी पर छिपकली का गिर जाना दुर्भाग्य का सूचक है। यदि कौआ दाहिनी ओर बोले, तो वह विपनि सूचक माना जाता है और बायीं ओर बोलने से सुख-सूचक। उल्लू ,काठ खोदने वाली तथा अन्य चिड़ियों के दाहिनी ओर बोलने पर अपशकुन तथा बायीं ओर बोलने से शुभ शकुन माना जाता है। भील को यदि कोई भी अपशकुन हो, तो वह अपनी यात्रा अथवा कार्य को स्थगित कर देगा। प्रेतों से भी भील डरता है और उनसे रक्षा करने के लिये बरवा द्वारा तैयार किए हुए तावीज आदि 8ाारण करता है।

भीलों के 8ाार्मिक विश्वास भिन्न-भिन्न भागों में तनिक भिन्न हैं। परन्तु अ8िाकतर वे जलदेव, पवनदेव, अन्नदेव, अग्निदेव और इन्द्र राजा, वैदिक देवताओं की पूजा करते हैं। आ8ाुनिक हिन्दू देवताओं में वे अ8िाकतर हनुमान और शिव को पूजते हैं। जब अकाल पड़ता है, वर्षा नहीं होती या बीमारी फैलती है, विशेषकर हनुमान की पूजा की जाती है। उस समय हनुमान की मूर्ति को तेल सिन्दूर लगाया जाता है। यदि वर्षा न हो और अ8िाक समय व्यतीत हो जाए तो हनुमान की मूर्ति को गाय के गोबर तथा मिप्ी से ढक देते हैं, जिससे देवता वर्षा के जलसे अपने को 8ाो सके। किन्तु इससे यह न समझना चाहिये कि भीलों के देवताओं की कोई सुन्दर मूर्तियां अथवा मंदिर होते हैं। अधिकतर किसी झाड़ी के पास एक छोटा-सा चबूतरा और उसपर रखे हुए पत्थर ही उनके देवता और देवालय होते हैं। भील अपने देवताओं को मीठी रोटी, नारियल, घी और शक्कर भेंट करते हैं। इनके अतिरिक्त भील भैरव और शीतला की भी पूजा करते हैं। इन देवताओं की पूजा भील विशेष अवसरों पर ही करता है। सा8ाारणतः यह अपने गांव के देवता की ही पूजा करता है।

(यू.एन.एन.)