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विविध
एक इसाई भी रहा पुजारी हनुमान मन्दिर में स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       नेम चन्द अजनबी
शिमला के ऊतुंग शिखर पर स्थित है जाखू मन्दिर अर्थात हनुमान का प्राचीन मन्दिर। लोक परम्परा के अनुसार हिमालय से लंका को संजीवनी बूटी ले जाते समय हनुमान का एक पांव जाख्ूा की चोटी पर पड़ा था जिस की स्मृति में आज वहां पर एक भव्य मन्दिर बना है। हनुमान की सैना का आज भी यहां पर एक छत्र साम्राज्य है। हजारों की संख्या में यहां श्रद्धालु रोज आकर हनुमान के स्मृति स्थल के दर्शन कर धन्य होते हैं।

जब से यह मन्दिर अस्तित्व में आया है तभी से वहां पुजारियों की एक लम्बी कतार बन गई है। आज बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस कतार में एक इसाई पुजारी भी शामिल है जो अपना इसाई धर्म छोड़कर हिन्दु बन गया था। इसका नाम था बाबा मस्त राम। 5 जून 1926 को जाखू मन्दिर के मुख्य पुजारी बाबा मंगल दास की मृत्यु के पश्चात बाबा मस्तराम मन्दिर के मुख्य पुजारी बने। बाबा मस्तराम 28 दिसम्बर 1928 तक अपनी अन्तिम सांस तक इस मन्दिर के पुजारी रहे।

बाबा मस्तराम जन्म से एक इसाई थे। उनका असली नाम चार्ली डी रसेट था। सन 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय चार्ली डी रसेट को उनके पिता डी रसेट कलकता से शिमला ले आए। डी रसेट बिल्डिंग कान्टे्रक्टर थे। शिमला आते ही उन्हें कई इमारतों के ठेके मिल गये। डी रसेट ने अपने पुत्र को उत्तरी भारत के प्रसिद्ध कान्वेंट स्कूल ÷विश्प कॉटन स्कूल' में दाखिल करवाया। शिमला के माहौल में चार्ली डी रसेट ऐसा ढला कि हनुमान जी का परम्‌ भक्त बन गया । वह प्रतिदिन सुबह सवेरे जाखू मन्दिर हनुमान जी के दर्शन करने जाता और वापस लौटकर स्कूल जाता। यह उसकी दैनिक क्रिया बन गई थी।

जब चार्ली डी रसेट दसवीं को हुआ तभी पिता की मृत्युु ने एक दम उसे अकेला कर दिया। चार्ली अपनी पढाई बीच में ही छोड़ कर जाखू मन्दिर के प्रांगण में एक बान के वृक्ष के नीचे चीते की खाल पहन कर हनुमत भक्ति में लीन हो गया। चार्ली ने अपनी अमीरों वाली पोशाक फैंक दी और भिक्षुओं के पीले वस्त्र धरण कर दिए। बान के वृक्ष के नीचे वो हनुमत भक्ति में इतने लीन हो जाते कि हनुमान की सेना उसके ऊपर उछल कूद करती रहती। मन्दिर को जाने वाले उन्हें कुछ खाने को देते उसी से गुजारा चलता। मन्दिर के पुजारी ने भगवान के प्रति उसकी अनन्य भक्ति को देखकर उन्हें अपना चेला बनाकर नया नाम दिया -बाबा मस्तराम।

उत्तरी भारत में यह अपनी तरह की अनौखी बात थी कि किसी इसाई ने अंग्रेजों के राज में हिन्दू धर्म अपनाया हो। सारे देश में यह खबर फैल गई। अंग्रेजों के आला अफसरों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, मगर वह टस से मस न हुए। यहां तक कि जज जार्ज श्याम की कोठी में भी उन्हें पेश किया गया। यहां उन्हें साठ रूपये माहवार की पेशकश की गई मगर सब बेकार।

जाखू में ही रहकर बाबा मस्तराम ने दो वर्ष तक कठोर तपस्या की। चीते की खाल ओढी होने के कारण लोग उन्हें लेपर्ड फकीर के नाम से पुकारने लगे। कुछ दिनों बाद मन्दिर के पुजारी ने मन्दिर का काम काज उन्हें सौंप दिया और स्वयं तीर्थ यात्रा में चले गये। अंग्रेज वहां आकर उन्हें पुनः इसाई धर्म अपनाने के लिए दबाव डालते रहे जिसके कारण बाबा जी का मन उचाट रहने लगा। जैसे ही मन्दिर का पुजारी तीर्थाटन कर लौटा तुरन्त जाखू छोड़ कर रेलवे स्टेशन पहुंच गए। कुछ दिनों तक वहीं घूमने के पश्चात उन्होने अनाडेल के नीचे एक वीरान पड़े मन्दिर में रहने का निश्चय किया। बहुत दिनों तक वहीं हरी सुमिरन करते रहे। परन्तु अंग्रेजों ने वहां भी उनका पीछा नहीं छोडा मगर तब तक वह हिन्दी पर अपना इतना वर्चस्व कायम कर चुके थे कि उनकी शुद्ध बेबाक हिन्दी देखकर उनके इसाई होने पर शक होने लगता।

वो शिमला छोड़ कर देशाटन के लिए निकल पडे। कुछ समय के लिए वो सपाटू (सोलन) के समीप कृष्णगढ़ हनुमान मन्दिर (कुठाड़) में भी रूके जहां उन्होंने एक गौशाला बनवाई। बाबा मस्तराम के अनुसार अगर हिन्दुस्तान में गौवध पर पूर्ण पाबन्दी लगा दी जाए तो यहां सर्वत्र शांति फैल जायेगी। वह लोगों को गाय पालने पर जोर देते।

तीर्थाटन करते करते वो महात्मा गांधी के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी स्वतंत्रता की जोत घर-घर जगाने का निश्चय किया। सन्‌ 1920 में वो वापस शिमला आ गये और पहाडों+ के लोगों को स्वतन्त्रता के आन्दोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते रहे। शिमला में छोटा शिमला के समीप स्ट्रॉवरी हिल में राजा सरवजीत सिंह ने बाबा के रहने के लिए एक कुटिया बनवाई। इस दौरान बाबा का जाखू मन्दिर में दैनिक आना जाना लगा रहा। 1926 से 1928 तक वो जाखू मन्दिर के मुख्य पुजारी रहते हुए स्वतन्त्रता की अलख पहाड़ों में जगाते हुए अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बने रहे। अन्त में 28 दिसम्बर 1928 को इस महान सन्यासी ने इस पृथ्वी से गमन किया। उन्हें मन्दिर के समीप ही दफनाया गया ।

(यू.एन.एन.)