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विविध
पुण्य कर्म का फल स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       डॉ. श्यामा वर्मा
एक बार राजा विक्रमादित्य ने अपने सभी दरबारियों और ज्योतिषियों को बुलाकर पूछा, 'मैं राजा कैसे बना?' उन्होंने कहा, 'हमें इसका पता नहीं। यहां से दस मील दूर एक देवदार के पड़े के नीचे एक साधु बैठा होता है। वह बहुत सिद्धि प्राप्त है। सभी लौकिक-अलौकिक प्रश्नों का समाधान तत्काल करता है। वही इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है। राजा अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिये उस साधु के पास जा पहुंचा।'

साधु ने कहा, 'तुम कौन हो?'

मैं राजा विक्रमादित्य।

'क्यों आए हो?' साधु ने पूछा।

राजा ने कहा, 'बताओ, मैं राजा कैसे बना?'

साधु ने रोटी बनाकर रखी हुई थी। उसने राजा को कहा, 'पहले तुम खाना खा लो। फिर उत्तर दूंगा।' राजा रोटी खाने लगा। उसने साधु से कहा, 'आप भी खाओ।' साथ ही अंगार-भस्म का ढेर पड़ा था। साधु ने गप-गप करके अंगार-भस्म खाया और कहा, 'राजा! मैं तो चला। तू दस मील और आगे जा। वहां दूसरा संत है। वह तेरे सवाल का जवाब देगा।' साुधु यह कहकर वहां से कहीं निकल गया।

राजा आगे गया तो उसे दूसरा साधु मिला। वह एकदम बोला, 'ओ राजा विक्रमादित्य! आज तू कैसे आया?' राजा बड़ा हैरान हुआ कि साधु को उसके नाम का कैसे पता चला। उसने कहा, 'साधु महाराज!' आप बड़े ज्ञानी लगते हो। आपने कैसे जाना, 'मैं राजा हूं और मेरा नाम विक्रमादित्य है।' अब आप मुझे यह भी बताओ कि मैं राजा कैसे बना? पिछले जन्म में मैंने कौन से अच्छे कर्म किये हैं?

साधु ने कहा, 'कोई बात नहीं मैं तेरे प्रश्न का उत्तर दूंगा। तू बैठ, पहले भोजन कर।' उसने राजा को खाना दिया और राजा खाना खाने लगा। राजा ने कहा, 'आप भी भोजन करो।' उस साधु ने भी गोबर-मिट्टी गूंथा, पेड़ा बनाया, झटपट खाया और बोला, 'राजा तू आगे जा। आगे एक गांव आएगा। उस गांव के पहले घर में तेरे पहुंचते ही एक बालक का जन्म होगा। वह तेरे प्रश्न का उत्तर देगा।'

राजा वहां से आगे निकला। जाते-जाते उसे एक गांव मिला। वह पहले घर में अंदर जाने लगा तो घर के मालिक ने रोका, 'इस समय कोई भी अंदर नहीं जा सकता।' उसने कहा, 'मैं राजा विक्रमादित्य हूं, मुझे जाने दो। मेरा जाना जरूरी है।' उन्हें अन्दर जाने दे दिया। जैसे ही राजा अन्दर गया उसी समय बालक का जन्म हुआ। उसे देखते ही बालक ने पूछा 'राजा विक्रमादित्य क्यों आए हो? जल्दी बताओ। विलम्ब किया तो बाद में पछताना नहीं। राजा ने अपना प्रश्न फिर पूछा, 'मैं किस अच्छे कर्म से राजा बना? इस बारे में मुझे बताएं।'बालक ने कहा, 'सुन राजा हमारे पिछले जन्म में एक देश में भारी अकाल पड़ा। खाने को कुछ नहीं बचा। आदमी धड़ाधड़ मरने लगे। पशु-पक्षी सब खत्म हो गए। हम चार भाई थे। हमने दूर तक एक-एक दाना ढूंढते-ढूंढते थोड़ा सा अनाज इकट्ठा किया। वह पीसा। तू सबसे छोटा था। तू रोटी बनाने लगा। एक रोटी बनी। तूने वह सबसे बड़े भाई को दी। उसने खाना आरम्भ किया ही था कि एक कृशकाय बूढ़ा वहां पहुंचा और बोला, 'बेटा मैं भूख से मर रहा हूं, मुझे भी रोटी दो।' बड़े भाई ने कहा, 'अरे! अगर मैं तुझे रोटी दे दूंगा तो स्वयं क्या अंगार-भस्म खाऊंगा।' तूने देखा कि वह अभी तक अंगार भस्म खा रहा है। राजा ने कहा, 'हां, वह पहला साधु अंगार-भस्म खाता है।'

बालक ने फिर कहा, 'तूने दूसरी रोटी बनाई और दूसरे भाई को दी। वह बूढ़ा फिर पहुंचा और बोलने लगा, 'मैं भूखा हूं, मुझे रोटी दो।' भाई ने कहा, 'हे! तुझे रोटी दूंगा तो मैं क्या गोबर-मिट्टी खाऊंगा?' और वह आज भी साधु बनकर गोबर-मिट्टी खा रहा है। तूने उसे आज ही देखा। राजा ने कहा, हां, दूसरा साधु मिट्टी-गोबर खा रहा था। बालक ने कहा, 'वह था तेरा दूसरा भाई। तूने तीसरी रोटी बनाई और मुझे दी। बूढ़ा फिर पहुंचा और रोटी मांगने लगा। मैंने जवाब दिया, 'तुझे रोटी दूंगा तो खुद क्या भूखा मरूंगा।' इसके परिणामस्वरूप मैं आज तक जन्म लेते ही बिना कुछ खाए-पिए मर जाता हूं। लेकिन आज मैं बात पूरी करने के पश्चात्‌ ही मरूंगा। जब तूने चौथी रोटी बनाई और खाने लगा तो वह बूढ़ा फिर पहुंचा। तूने कहा, 'बूढ़े बाबा, तेरी भूखी बड़ी, ले तू खा, मुझे चाहे मरने दे। तूने स्वयं रोटी नहीं खाई बूढ़े को दी। उसकी भूख मिटा दी। तूने पूण्य किया, धर्म कमाया और आज तू राजा है। हमने भलाई नहीं की, अपना पेट भरा। यह हमें शाप था, जिसकी मुक्ति तेरे द्वारा होनी थी। वह आज पूरा हुआ। तू आया और हमें मुक्ति मिली।' ऐसा कहते ही बालक ने प्राण त्याग दिये।