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विविध
दर्द की दवा भी तो है संगीत स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       डा ए पी अग्निहोत्री
संगीत की महिमा अदभुत है। साहित्य और कला के साथ संगीत संयोग कर उस विद्वान ने ठीक ही कहा था, 'साहित्य संगीत कला विहीन, साक्षात पशु पुच्छ विषाण हीनः।' संगीत की महिमा अपार न होती, तो भगवान ने स्वयं न कहा होता-

नाहं वसामि वैकुण्ठे, यागिनां ह्रदय न च।
मदभक्‍ता ‍यत्र गायन्ति, तत्र तिष्ठामि नारद॥

आधुनिक विज्ञान ने भी संगीत द्वारा प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभाव की छानबीन की है और उसे अद्भुत पाया है। प्राणियों की कोमल भावनाओं पर इसके प्रभाव पड़ने की बात तो बहुत प्राचीन काल से ही लोग कहते हैं; पर आधुनिक खोजों ने यह भी प्रमाणित किया है कि संगीत का प्रयोग अब रोगों की चिकित्सा के लिए भी विशाल पैमान पर होने लगेगा। इस विषय में वैज्ञानिकों के प्रयोग अब तक सफल हो सके हैं और इस बात की पूरी सम्भावना पायी जाती है कि विशाल पैमाने पर इसके सफल प्रयोग होने लगेंगे। बीमारी तथा साधारण उन्माद की अवस्था में और दूसरी औषधियों के साथ सन्ध्याकालीन संगीत नियमानुकूल- ऐसी व्यवस्था सम्भवतः अब डॉक्टर देने लगेंगे और केवल उन्माद ही नहीं, अनेक बीमारियों से प्राणियों को मुक्‍त करने के लिए।

प्रयोगशालाओं, अस्पतालों, बन्दी-गृहों और मानसिक रोगों की चिकित्सा करने वाले औषधालयों में काम करने वाले विशेषज्ञों ने अनेक परीक्षाओं के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि हमारे शरीर एवं मन पर संगीत का अद्भुत प्रभाव पड़ता है।

एक रूसी विज्ञानवेता प्रोव् एसव्वीव् वेदोव ने कई बार अपने प्रयोगों में सफलता प्राप्त कर लेने के बाद यह परिणाम निकाला था कि संगीत द्वारा आंखों का इलाज किया जा सकता है और जिन आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती चलती है, उनमें लगभग 25 प्रतिशत सुधार आसानी के साथ संगीत द्वारा इलाज करके किया जा सकता है। उस वैज्ञानिक ने प्रयोग करके देखा कि जो घड़ियां घण्टा बजाती हैं, उनके संगीतमय मधुर स्वर से ही आंखों पर काफी प्रभाव पड़ जाता है। ज्योतिष, अणुवीक्षण यन्त्र तथा इन ग्रेविंग आदि से सम्बद्ध कायो में इन प्रयोगों के परिणामों से काफी काम लिया जा सकता है ; क्योंकि नेत्रों की ज्योति की इनमें बहुत बड़ी आवश्यकता पड़ती है और संगीत के माध्‍यम से ज्योति को न केवल बढ़ाने, बल्कि उसे खूब स्पष्ट रखने में भी सहायता मिलती है।

रूस की अपेक्षा अमेरिका के प्रयोग तो और भी आश्चर्य जनक देखे गये थे। शिकागो के पागलखाने में विश्व-प्रसिद्ध, पियानोवादक मोव् बोगूस्लावस्की ने कई अनोखे प्रयोग किये। उस पागलखाने में एक इटैलियन युवती भरती हई थी। अभी उसको एक ही सन्तान हुई थी कि बेचारी बीमार पड़ी और अस्पताल से पागल होकर निकली। इसके बाद उसे शिकागो के पागलखाने में डाला गया, क्योंकि उसकी हरकतें ऐसी होने लगी थीं कि दूसरों की तो बात ही क्या, उसका अपना बच्चा तक उससे सुरक्षित न था। अजब विक्षिप्त मस्तिष्क उसका हो गया था। चुपचाप आकाश की ओर देखती रहती और दवादारू के लिए कोई पास जाता, तो चीख मारकर उधम मचाती और चिल्ला-चिल्लाकर कहती - 'मेरा इलाज पशुओं की तरह करो।' अपने बच्चे को तो देखते ही वह भूखी शेरनी की भांति उसकी ओर टूट पड़ती। उसे वह फूटी आंख भी देखना नहीं चाहती थी।

बोगूस्लावस्की ने सुना, तो वह हैरत में आ गया; पर उसने प्रयोग करने का इरादा किया। उसने पागलखाने में जा पियानों बजाकर उस इटैलियन पागल की परीक्षा करनी चाही। आज्ञा मिल गयी और बोगूस्लावस्की पागल के पास गया। वहां जाकर उसने इटैलियन गीत पियानो पर बजाना शुरू किया। उच्चकोटि के विशुद्ध संगीत से लेकर ग्राम्य गीतों तक को उसने विभिन्न स्वरों में बजाया। अन्त में जब नारी-जो अब तक चुपचाप ध्यानावस्थित संगीत की तरफ खिंची सी बैठी थी - फूट पड़ी और सिसक-सिसकर रोने लगी; और पियानो का बजना अभी बन्द नहीं हुआ था कि वह हाथ जोड़कर नौकरों से प्रार्थना करने लगी कि उसका बच्चा एक बार-सिर्फ एक बार-क्षण भर के लिए ही उसे दिखा दिया जाये।

पियानो का प्रयोग एक दूसरी महिला पर भी किया गया था। वह उन्माद ग्रसित थी और समय-समय पर दौरा आया करता था, जिससे वह अकस्मात्‌ गिर पड़ती और कभी-कभी घण्टों बेहोश पड़ी रहती। एक बार उसे दौरा आने ही वाला था कि तब तक पास ही बैठे हुए व्यक्ति ने पियानो बजाना आरम्भ कर दिया। थोड़ी देरे के बाद देखा गया कि दौरा बढ़ा नहीं। पहले की अपेक्षा दौरा मामूली रहा। और तब से उस रोगिणी को लेकर पियानो के और भी कई बार प्रयोग किये गये। इन सारे प्रयोगों के आधार पर उस रोगिणी के लिए अब यही व्यवस्था की गयी कि दौरे का आभास मिलते ही वह पियानो पर संगीत की एक 'खुराक' ले ले और मूर्च्छना शान्त हो जायेगी।

मनोविज्ञानवेना, सर्जन, दन्त-रोगों के विशेषज्ञ संगीत द्वारा ऐसे-ऐसे काम लेने लगे थे, जो चिकित्सा-विज्ञान द्वारा पहले इतने सहजसाध्य न थे। न्यूयार्क शहर के बिलेव अस्पताल के डाव् एलव्एसव् बेण्डर ने स्वभावतः उत्पाती बच्चों के उपद्रवों को छुड़ाने का साधन संगीत में खोज निकाला था। ब्रुकलिन के नेत्र और कान अस्पताल के चिकित्सक डाव् एव्एफव् अर्डमैन ने चीर-फाड़ के समय रोगियों के कान में 'ईयर फोन' लगाकर उनकी यन्त्रणाओं को बहुत कम कर दिया था। कुछ ऐसे रोगी होते हैं, जो पीड़ा से नहीं, पीड़ा की आशंका से घबराते और स्नायविक दुर्बलता के कारण मामूली चीर-फाड़ का नाम सुनते ही कांपने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए चिकित्सकों ने संगीत की व्यवस्था कर दी। इसकी व्यवस्था यों की गई थी कि जब उनका आपरेशन होता रहेगा, तब पास में रखे हुए ग्रामोफोन पर बढ़िया रेकर्ड बजते रहेंगे और एक ईयर फोन रोगी के कान पर लगा दिया जायेगा, जिससे उसकी मधुर स्वर-लहरी में डूबा वह साधारण यन्त्रणाओं की ओर ध्यान भी न दे सकेगा। एक बार एक संगीतज्ञ ने स्वयं अपने हाथ से हारमोनियम बजाना स्वीकार किया था, जब कि डाक्टर उसकी जांघ में लगी हुई गोली निकाल रहे थे।

संगीत का प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही पड़ता हो, ऐसी बात नहीं है। पशुओं पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। स्वीडन के कुछ डेयरी फामो में इस बात का प्रयोग किया गया था और उसमें यह सफलता मिली थी कि गायों के दुहते समय अगर संगीत होता रहे, तो गायें अधिक दूध देती हैं। मदारी के डमरू पर नाचते हुए बन्दरों और भालुओं तथा वीणा-ध्वनि पर प्राणों का भी मोह छोड़ने वाले हिरनों की घटनायें कितनों ने आंखों देखी हैं। विषधर सर्प जब सपेरे की तुमड़ी पर मुग्ध होकर-अपना विषैला स्वभाव त्याग उन्मन होकर उसके संकेतों पर नाचने-लोटने लगता है, तब मनुष्य संगीत में अपना पन भूल जाये, तो कोई आश्चर्य नहीं। बादलों के गरजने का स्वर सुनकर मोरों का पिहकना और नाचना संगीत का ही चमत्कार है। विभिन्न पशुओं और मनुष्यों पर संगीत का विभिन्न रूपों में प्रभाव पड़ता है, लेकिन पड़ता है। यह तो जंगली तथा पालतु पशु-पक्षियों एवं सभ्य-असभ्य सभी जाति के स्त्री-पुरुषों पर पड़ता है। हम आप अक्सर इसके प्रभाव देखते ही रहते हैं और संगीत के इस सार्वजनीन प्रभाव को देखकर ही वैज्ञानिकों ने प्राणिमात्र के कल्याण के लिए इसका लाभजनक उपयोग करने की ओर ध्यान दिया है।

हमारे शरीर और मन पर संगीत द्वारा पड़ने वाले प्रभाव को सब स्वीकार करते हैं; पर संगीत-शास्त्रज्ञ भी अभी निर्विवाद रूप से इस तथ्य पर नहीं पहुंच सके हैं कि यह प्रभाव पड़ता कैसे है। कुछ लोगों का विश्वास है कि संगीत ध्वनि की जो कम्पन तरंगे उठती हैं, उनका हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है; पर दूसरे विशेषज्ञों का मत है कि स्नायुओं तथा भावनाओं के सम्पर्क से ही हम संगीत से प्रभावित होते हैं। कितने ही रोग चिन्ता, भय, अतिभाव प्रवणता आदि के कारण उत्पन्न होते हैं, अतः डॉव् जार्ज डब्ल्यूव् वइल का कहना है कि स्नायुओं तथा भावनाओं को संगीत प्रभावित करके उ2 रोगों को भी प्रभावित करता है। संगीत द्वारा स्नायुओं को आराम मिलता है, अतः उन रोगों में भी सुधार होने लगता है।

विभिन्न प्रकार के संगीत-वाद्य का प्रभाव विभिन्न व्यक्‍ितयों पर विभिन्न रूपों में पड़ता है। उदाहरणार्थ- ढोल की आवाज किसी के मस्तिष्क को शान्त कर सकती है, तो कितने ही उनेजित हो जाते हैं। विभिन्न रागों का प्रभाव सुनने वालों पर विभिन्न रूपों में देखा गया है। धीरे-धीरे संगीत का गुनगुनाना हमारे ह्रदय को मुग्ध करता है। बैण्ड के साथ बिगुल का स्वर प्राणों में कैसे चंचलता भर देता है। रात का विहाग ह्रदय को मथकर भावनाओं को आन‍दोलित कर देता है, तो सवेरे की शहनाई प्राणों को भाव-विभोर कर देती है। संगीत-वाद्य चल रहा हो, तो आप लोगों की नजरें बचाकर जरा सुनने वालों के चेहरों पर दृष्टि डालिये, देखिये, कितने लोगों पर कितने तरह के भाव खिंच गये हैं, हमने जान-बूझकर कहा है; क्योंकि उस समय मनोभाव गुप्त नहीं रह सकते। आंखों, भवों और चेहरे पर स्पष्ट खिंच उठते हैं।

उत्पाती कैदियों और भीषण अपराधों के अपराधियों पर भी संगीत का कैसा प्रभाव पड़ता है, इसे संगीत शास्त्र के विशारद विलियम वाल ने प्रत्यक्ष प्रमाणित कर दिखाया। विलियम वाल हालैण्ड में पैदा हुआ था; पर अपनी संगीत सम्बन्धी प्रतिभा का विकास उसने अमेरिका में किया। एक दिन की घटना है- एक पागलखाने में वह अपना बाजा लिये घुस गया। यह बड़े जीवट का काम था; क्योंकि उस पागल खाने में कई पागल ऐसे थे, जो बहुत भयानक समझे जाते थे। विलियिम वाल को भीतर दिखाई पड़ा कि एक बलिष्ठ, सुगठित शरीर वाला पागल, जिसकी पागलखाने के अधिकारियों ने खास निगरानी रखने का आदेश दे रखा था, उसकी ओर आगे बढ़ा। लेकिन वाल को अपनी कला पर विश्वास था। उसने संगीत स्वर और मधुर किया और पागल मन्त्रमुग्ध की तरह आगे बढ़कर उसके स्वर में स्वर मिलाकर गाने लगा। इसके बाद हते में एक बार गाने की सुविधा उसे इस प्रतिज्ञा पर मिली कि वह अपने को नियन्त्रित रखेगा। कुछ महीनों के बाद उसे पागलखाने से बाहर निकाल दिया गया। गाने की सुविधा उसे मिल गयी, तो वह अक्सर गाता पाया जाता और संगीत में उसका ध्यान इतना जमा कि उसके मस्तिष्क की विक्षिप्तता बहुत अंशों में जाती रही। अब उसका पागलपन भी दूर हो गया।

संगीत प्रभाव उद्योग धन्धों पर भी पड़ रहा है। एक ही प्रकार का काम करते-करते शारीरिक थकान के पहले ही जो मानसिक थकान आ जाती है, उसे संगीत द्वारा ही मिटाया जा सकता है, इसका पता लगते ही कितनी ही कम्पनियों ने अपने-अपने कारखानों में संगीत की व्यवस्था कर रखी है। काम के साथ-साथ हल्का, धीमा सा संगीत चलता रहता है और श्रमिक काम करते रहते हैं। देखा गया है कि इस व्यवस्था से लोग प्रसन्नता पूर्वक अधिक मात्रा में अच्छाई के साथ काम कर जाते हैं। लन्दन में दो प्रयोग किये गये थे, जिनसे देखा गया कि माल पैक करने वाली कम्पनी में काम के व2 धीमे-धीमे स्वर में संगीत चल रहा था। इसका प्रभाव यह दिखाई पड़ा कि 353 पैक करने वाले व्यक्तियों ने और दिनों की अपेक्षा 11 प्रतिशत पैक अधिक किये।