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धर्म-संस्कृति
अचंभित अकल्पनीय पाताल भुवनेश्‍वर गुफ़ा स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        चक्रधर उप्रेती

पाताल भुवनेश्‍वर गुफा
गुफा में शंकराचार्य द्वारा 19वीं शताब्दी में स्थापित तांबे मड़ा श‍िव लिंग

सड़क के दोनों ओर मौन खड़े वृक्षों के मध्य धूप छांव के बीच हिचकोले खाते आपका वाहन अल्मोड़ा शहर की ऊंची नीची घाटियों से गुजरता चला जाता है। कभी सैंकड़ों फुट नीचे तो कभी चढ़ाई-चढ़ते-चढ़ते वाहन बादलों की पालकी में हवा में तैर रहा होता है। ऐसे में अचानक सामने दिखाई देने लगती हैं धवल हिमालय पर्वत की नयनाभिराम नंदा देवी, पंचचूली, पिंडारी, ऊंटाधूरा आदि चोटियां। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से केवल चार घंटे में टैक्सी द्वारा शेराघाट होते 160 किलोमीटर की दूरी तय कर गंगोलीहाट नामक स्थान पर पहुंचते-पहुंचते प्रकृति सब कुछ लुटा देती है पर्यटकों पर। प्रकृति की गोद में बच्चों की तरह अठखेली करते यात्रीगण जरा सी भी थकान महसूस नहीं करते। (पर्यटक दिल्ली से चल कर पहले दिन 350 कि.मी. की दूरी तय कर अल्मोड़ा पहुंच सकते हैं)।

अगर थोड़ी सी थकान हो भी गई तो उसे दूर करने और कुदरत की आश्‍र्चयजनक गुफ़ाओं को देखने के लिए आप को अपने वाहन से गगोलीहाट से अब केवल 8 कि.मी. की दूरी तय करनी है और कुछ देर बाद ही आप पहुंच जाते हैं भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ स्कन्द पुराण में वर्णित पाताल भुवनेश्‍वर की गुफा के सामने। कुमाऊं हिल्स के एक जिला पिथौरागढ़ की तहसील को गुफाओं वाला देव कहा गया है। प्राचीन काल से ही पाताल भुवनेश्‍वर प्रसिद्ध रहा है।

चारों ओर वृक्षों से आच्छादित एक गुफा जो बाहर से किसी गांव के पुराने घर का 4 फुट लम्बा, डेढ़ फुट चौड़ा द्वार यानि एक बड़ी सूई में छोटा सा छेद मालूम होता है, उस द्वार के सामने पहुंच कर एकदम आप उस स्थान विशेष से प्रभावित नहीं होंगे। यही है सरयू नदी व रामगंगा नदी के मध्य गुपतड़ी नामक स्थान की ऐतिहासिक पाताल भुवनेश्‍वर गुफा। यहां तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं।

गुफा तहखाने की तरह भूमि के अन्दर है। इस गुफा में उतरने के लिए कोई पौढ़ियां नहीं है, आपको पच्चीस फुट सीधा उतरने के लिए घुप्प अंधेरा मिलेगा, कुछ डर सा लगेगा। बरसों से लोग उबड़-खाबड़ पत्थरों पर पैर टिका उल्टा या सीधा उतर लकड़ी जलाकर गुफा के दर्च्चन करते थे। धुंए के कारण शरीर में कालिख भी लग जाया करती थी अब कुछ वर्षों पहले भारतीय थल सेना के सौजन्य से जैनरेटर की रोशनी में जन्‍जीर की मदद से उतर कर आप आराम से गुफा को बिजली की रोशनी में देख सकते हैं। केवल जैनरेटर में तेल के खर्चे के लिए आपको पुजारी को 25-30 रु. तक की राशि देनी होगी।

डरते संभलते गुफ़ा में उतरते ही आप अपने को पाते हैं 33 करोड़ देवी-देवताओं की प्रतीकात्मक च्चिलाओं, प्रतिमाओं व बहते हुए पानी के मध्य और आपका हृदय गदगद् हो उठता है और आप सारी थकान भूल जाते हैं। जैसे ही गुफ़ा की मौन तन्द्रा को भंग कर पुजारी की आवाज गूंजती है कि आप शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के उपर शेष नाग का फ़न है तो आपको कुछ समझ नहीं आयेगा परन्तु जैसे ही उस गुफ़ा के चट्टानी पत्थरों पर गहन दृष्टिपात करें तो आपके शरीर में सिरहन सी दौड़ेगी और आप वास्तव में अनुभव करेगें की कुदरत द्वारा तराच्चे पत्थरों में नाग फ़न फैलाये है। स्वर्ग से समागत ऐरावत हाथी का शरीर उन चट्टानों में शायद न दिखे पर जमीन में बिल्कुल झुक कर भूमि से चन्द ईचों की दूरी पर चट्टानों में हाथी के तराशे हुए पैरों को देख कर आपको मानना ही पड़ेगा कि ईश्‍वर (विश्‍वकर्मा) के अलावा कोई भी मूर्तिकार इन पैरों को नहीं घड़ सकता है। (स्कन्द पुराण के मानस खण्ड 103 अध्याय के 155 वें श्लोक में इसका वर्णन है। श्लोक 157 में वर्णित परिजात व कल्पतरू वृक्षों के बारे में वर्तमान में भी पुजारी चट्टानों की ओर इंगित करके उनके स्थान को दिखाता है।

अब आप शेष नाग के शरीर पर (हड्डियों) पर चल कर पहुंचते हैं उस जगह जहां शिव ने गणेश का सिर काट कर रख दिया था। भगवान शंकर की लीला स्थली होने के कारण उनकी विशाल जटांए इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं। कालभैरव की जीभ साक्षात दिखती है जहां से अगर आगे जाकर पूंछ से निकल जायें तो कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्त हो जाता है। गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। ये कामधेनु गाय का स्तन है जिससे वृषभेश के ऊपर सतत दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है (मानस खण्ड 103 अध्याय के श्लोक 275-276 में भी ये वर्णन है।) कुछ और आगे जाकर नजर आती है हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था। ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्‍र्चय चकित होता है जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है। चारों युगों के प्रतीक पिंड यहां पर स्थित हैं, जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफ़ा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में 1 ईच बढ़ती है और पुजारी का कथन सत्य मानें तो दोनों पिंडो के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जायेगा। 19वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित शिवलिंग भी यहां देखा जा सकता है। ये सब पाताल भुवनेश्‍वर की महानता है।


गुफा में काल भैरव की जीभ

अगर उपरोक्त वर्णन शायद किसी तिलस्मी कहानी का मनघड़न्त हिस्सा लगे तो उठाएं भारत का प्राचीन स्कन्द पुराण ग्रन्थ और टटोलिये मानस खण्ड के 103वें अध्याय के 273 से 288 तक के श्लोकों को, आपकी जिज्ञासा अपने आप शान्त हो जायेगी। ग्रन्थ में गुफ़ा का वर्णन पढ़ कर उपरोक्त प्रतिकात्मक मूर्तियां मानो साक्षात जागृत हो जाएंगी और आप अपने 33 करोड़ देवी-देवताओं के दर्शन कर रहे होंगे।

शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ्‌ स्मराणत्‌ स्पर्च्चनादेव
पूजनात्‌ किं ब्रवीम्यहम्‌ सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्‍वरः
                                                                -स्कन्द पुराण मानसखंड 103/10-11

  (अर्थात व्यास जी ने कहा मैं ऐसे स्थान का वर्णन करता हूं जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्च्च मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वह सरयू, रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्‍वर है)।

103वें अध्याय के श्लोक 21 से 27 के अनुसार ये भूतल का सबसे पावन क्षेत्र है। पाताल भुवनेश्‍वर वहा जागरूक है और उनका पूजन करने से अश्‍वमेध यज्ञ से हजार गुणा फल प्राप्त होता है अतः उससे बढ़कर कोई दूसरा स्थान नहीं है। चार धाम करने का यच्च यहीं प्राप्त हो जाता है। (श्‍लोक 30-34) के अनुसार पाताल भुवनेच्च्वर के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ कुलों का उद्धार कर शिव सायुज्य प्राप्त करता है। पाताल भुवनेश्‍वर जाने के कई रास्ते हैं। आप अल्मोड़ा से पहले गंगोलीहाट शेराघाट, या बागेश्‍वर, या दन्या होते जा सकते हैं। टनकपुर, पिथौरागड़ से भी गंगोलीहाट जा सकते हैं। दिल्ली से बस द्वारा 350 कि.मी. यात्रा कर आप अल्मोड़ा पहुंच कर विश्राम कर सकते है और वहां से अगले दिन आगे की यात्रा जारी रख सकते हैं। रेलवे द्वारा यात्रा करनी हो तो काठगोदाम अन्तिम रेलवे स्टेशन है वहां से आपको बस या प्राइवेट वाहन बागेश्‍वर, अल्मोड़ा के लिए मिलते रहते हैं।

(यू.एन.एन.)