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कविता
आज का अभिमन्यु स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        जगदीश शर्मा
तब अभिमन्यु ने जो सुना-
उसको आत्मसात किया और-
फिर किया उसके अनुसार आचरण-
शुद्ध-निर्विकार/आत्मबल पर,
तभी वह चक्रव्यूह को भेद तो गया
पर उससे बाहर न आ सका, क्योंकि-
कूटनीति किस बला का नाम है-
यह वो नहीं जानता था।

जबकि, आज का अभिमन्यु
पहले ही भरता है दम्भ,
दिखाता है आच्च्वासनों के
नए-नए सब्ज+बाग
रचता है अपना ही एक चक्रव्यूह,
और उलझते जाते है इसमें-
कुरंग सम निरीह लोग,
आच्च्चर्य! वे नहीं मानते कि
इस चक्रव्यूह को इसी अभिमन्यु ने
रचा है अपनी कूटनीति से
और वह इसे भेदकर-
जब बाहर निकल आता है
तो करते हैं लोग तुमुलनाद,
उसकी स्तुति में बन्दनबार सजाते हैं
यह न बूझते हुए कि-
हर बन्दनबार
उसी के व्यूह का एक चक्र है।

कल जब वह आया था
तो उसके रजत घोषणा पत्र-
सभी के मन को छू गये थे,
उसने फतवा दिया था-
आज तक होता रहा है शोषण-
पांडवों का, स्वयं
हर नये अभिमन्यु द्वारा
इसलिए हर पांडव में करनी होगी-
स्थापरा अभिमन्यु की,
और फिर हट जाना होगा
मुझे स्वयं चित्रपट से।
और ......
ऐसे फतवों में कौन नहीं आता!

पर आज वही अभिमन्यु
उसी प्रकार भेदने के बाद
पुनः करता रहता है निर्मित
एक के बाद दूसरे व्यूह को,
और हम पिसते रहते हैं-
उसी चक्र के बीच-
बिन समझे बिन चीन्हें,
और छले जाते हैं बार-बार
आज के अभिमन्यु द्वारा।

(यू.एन.एन.)