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विशेष समाचार
बन गई पीतल स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
शिमला (यू.एन.एन.) हिमाचल प्रदेश में उल्लेखनीय स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के कार्यान्वयन के संबंध में जो आंकड़े प्रकाश में आए हैं, उन्होंने यह सवाल पैदा कर दिया है कि आखिर वे कौन से ऐसे कारण रहे हैं जिन्होंने इस महत्वपूर्ण योजना को राज्य में सोने की जगह पीतल सा बना डाला है।

एक प्रमाणिक रपट के अनुसार इस योजना के तहत करोड़ों रुपये की राशि ऐसी आंकी गई है जिसके उपयोग को अतिनिकृष्ट माना गया है तथा इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा जांच किए जाने के भी संकेत मिले हैं। उल्लेखनीय है कि स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का उद्देश्य निर्धन परिवारों के 30 प्रतिशत सदस्यों को आच्छादित करना था। योजना में तीन वर्षों की अवधि के आनुपातिक लक्ष्य प्राप्त ही नहीं किए गए तथा इस संदर्भ में 43 प्रतिशत की कमी आंकी गई है। समाज के दुर्बल समूहों को, जिनके लिए यह योजना विशेष रूप में चलाई गई, वांछित लाभ प्राप्त ही नहीं हुए। यही नहीं मौलिक गतिविधियों के चयन तथा मौलिक गतिविधि के लिए परियोजना प्रतिवेदन तैयार करने में भी अनेक कमियां दर्ज की गई हैं। इस योजना के अंतर्गत 10.47 करोड़ रुपये के 400 हाईड्राम्ज संस्थापित करने के लिए एक विशेष परियोजना व्यवहार में आनी थी, परंतु यह परियोजना भी इस तरह आरंभ की गई जैसे इसका कोई सांई-गुसांई नहीं था।

मुख्य रुप में ग्रामीण निर्धनता की समस्या का सामना करने के लिए समय-समय पर अनेक कार्यक्रम व्यवहार में लाए गए। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाना था कि कार्यक्रमों के लक्ष्य प्राप्त होने से संबंधित लोगों को कोई लाभ पहुंचा है अथवा नहीं। हिमाचल प्रदेश में पांच वर्ष की अवधि में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम पर 22.89 करोड़ रुपये का व्यय करने के बावजूद गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की संख्या जो कि वर्ष 1994-95 में 2.59 लाख आंकी गई थी, वर्ष 1998-99 तक ही बढ़ कर 2.86 लाख हो गई थी। वर्ष 1995-99 के दौरान स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं को 58.30 लाख रुपये की लागत से प्रशिक्षण के अंतर्गत प्रशिक्षित किया जाना था और इसके तहत 2182 जिन लोगों को प्रशिक्षित किया गया, उन्हें रोजगार तक प्रदान नहीं किया गया था। इसके अलावा स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण रोजगार योजना, जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी संख्या में लघु प्रतिष्ठान संस्थापित करना आवश्यक था, के तहत यह निर्धारित किया गया था कि इसके अधीन ग्रामीण निर्धनों की संभावनाओं को मुख्य आधार बनाया जाएगा। यह उद्देश्य भी रखा गया था कि इस योजना के अंतर्गत जिन परिवारों को सहायता प्रदान की जा रही है, उनके संदर्भ में यह सुनिश्चित किया जाए कि इन परिवारों को तीन वर्ष की अवधि में गरीबी की रेखा से ऊपर लाया जा चुका है। अब रपट से यह भांडा फूटा है कि संबंधित योजना इस कदर टांय-टांय फिस्स्‌ रही है कि तीन वर्षों में संबंधित परिवार गरीबी की रेखा से ऊपर तो क्या आने थे, राज्य में गरीबी की रेखा से नीचे जाने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में केन्द्र तथा राज्य का धन लगाने का अनुपात 75 व 25 प्रतिशत रखा गया है। उल्लेखनीय है कि सम्बन्धित अवधि में सतारुढ़ रही राज्य सरकार ने इस योजना के अंतर्गत आने वाली विशेष परियोजनाओं के लिए करोड़ रुपये का अपना अंशदान तक समय पर निस्तारित नहीं किया था। इसके अतिरिक्त कुछ जिलों तथा खण्डों में कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए प्रदान किए जाने वाले धन में 1.40 करोड़ रुपये की कमियां दर्ज की गई हैं। योजना के चार संगठकों पर 22.03 करोड़ रुपये की राशि व्यय की गई। ऐसा होने पर भी प्रत्येक संगठक पर व्यय के निर्धारित अनुपात का राज्य के किसी भी जिला ग्रामीण विकास अभिकरण द्वारा अनुसरण तक नहीं किया गया। संबंधित अवधि में व्यय की निर्धारित सीमा और वास्तविक व्यय की संगठकवार स्थिति गंभीर रही है।

योजना के अंतर्गत आत्म सहायता दलों के लिए प्रशिक्षण, संरचना, विकास तथा परिक्रामी निधि पर व्यय में कमी क्रमशः 81, 46 तथा 58 प्रतिशत दर्ज की गई है। इसके अलावा कुल आवंटन के 60 प्रतिशत के प्रति 83.1 प्रतिशत इमदादों पर खर्च किया गया। इसके परिणामस्वरूप स्वरोजगारियों की पर्याप्त कुशलता का विकास तक नहीं किया गया और इन दलों की क्षमता निर्माण पूर्ण रुप से सुनिश्चित तक नहीं किया गया। यह रोचक तथ्य है कि इस योजना के संबंध में संबंधित निदेशक ने कोई ठोस आंकड़े अथवा उत्तर देने की अपेक्षा रपट बनाने वाले लोगों के सामने हाथ झाड़ दिए।

इस कार्यक्रम की प्रत्यक्ष उपलब्धियां बेहद निराशाजनक रही है। पांच वर्षों में प्रत्येक खण्ड में मुख्य रूप में 30 प्रतिशत निर्धन लोगों को आच्छादित करना स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का प्रमुख लक्ष्य था। ऐसा लक्ष्य होने पर भी हिमाचल में स्थिति क्या रही है, आंकड़े मुंह खोल कर बोल रहे हैं।

राज्य में लक्ष्यों की प्रत्यक्ष उपलब्धियों में 43 प्रतिशत की समग्र कमी दर्ज की गई है जबकि यदि जिलावार आंकड़ों को लिया जाए तो कमी की प्रतिशतता 28 से 64 प्रतिशत के मध्य आंकी जा सकती है। उल्लेखनीय है कि इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण निर्धनों में से भी कमजोर वर्ग के निर्धनों पर विशेष ध्यान दिया जाना अपेक्षित था। कार्यक्रम के अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं तथा विकलांगों के आच्छादन के लिए भारत सरकार द्वारा स्वरोजगारियों को क्रमशः 50 प्रतिशत, 40 प्रतिशत तथा 3 प्रतिशत का नियम निर्धारित किया गया था।

यह पाया गया है कि राज्य के तीन जिलों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के संबंध में आच्छादन मानकों के अनुसार था, जबकि राज्य के नौ जिलों में यह केवल 25 से 49 प्रतिशत के मध्य दर्ज किया गया है। राज्य के चार जिले ऐसे भी रहे हैं जहां महिला लाभग्राहियों का आच्छादन केवल 16 तथा 35 प्रतिशत के मध्य था। इसके अलावा सम्बन्ध्ति अवधि के दौरान 2944 विकलांग व्यक्तियों में से केवल 99 विकलांग स्वरोजगारियों को सहायता प्रदान की गई। राज्य के पांच जिले तो ऐसे नकारा रहे जहां स्कीम के अंतर्गत किसी भी विकलांग व्यक्ति का आच्छादन तक नहीं किया गया। सात जिलों में प्रतिशतता 0.06 तथा 2.04 के मध्य रिकार्ड की गई है। मजे की बात यह है कि संबंधित विभाग के निदेशक महोदय को यह भी पता नहीं था कि कमजोर वर्गों के कम आच्छादन के कौन-कौन से कारण रहे हैं।

राज्य के जिन तीन जिलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का आच्छादन मानकों के अनुसार दर्ज किया गया है, वे जिले किन्नौर, लाहौल एवं स्पीति तथा ऊना रहे हैं। जिन नौ जिलों में यह 25 तथा 49 प्रतिशत के मध्य रहा है, वे जिले बिलासपुर, चम्बा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मण्डी, शिमला, सिरमौर तथा ऊना हैं। इसके अलावा जिन चार जिलों में महिला लाभाग्रहियों का प्रतिशत 16 से 35 प्रतिशत के मध्य रहा है, वे जिले चम्बा, किन्नौर, कुल्लू तथा लाहौल एवं स्पीति रहे हैं। जिन जिलों में विकलांगों का आच्छादन 0.06 तथा 2.04 के मध्य दर्ज किया गया है, वे जिले बिलासपुर, चम्बा, कांगड़ा, मण्डी, शिमला, सिरमौर तथा सोलन रहे हैं।

योजना के अंतर्गत यह निर्धारित किया गया था कि खण्ड विकास अधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त किया गया प्रतिनिधि बैंक और संबंधित पंचायत के प्रधान के अंतर्गत एक तीन सदस्यीय दल के माध्यम से प्रत्येक उस स्थान का दौरा करेगा जहां लोग बसे हुए हैं। इन दौरों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाना था कि गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में से कौन से ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें योजना के अंतर्गत चिन्हित किया जा सके। स्वरोजगारी एक व्यक्ति या एक समूह भी हो सकता था। ताकि अधिक काम न करना पड़े इसलिए खण्ड विकास अधिकारियों ने एक व्यक्ति की शिनाख्त करने को लगभग तिलांजलि देकर समूहों को चिन्हित करने पर अधिक बल दिया जिससे वे हजारों लोग योजना के लाभ से वंचित हो गए, जिन्हें इसका लाभ पहुंच सकता था। राज्य के बहुत से खण्ड ऐसे पाए गए हैं जहां इन लोगों को चिन्हित करने के लिए कोई दल ही गठित नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में नियमों के अंतर्गत आने वाले लोगों को सही रुप में चिन्हित ही नहीं किया जा सका।

स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना में किस तरह धांधली का बाजार गर्म रहा है, यह बात इन्हीं आंकड़ों से स्पष्ट हो जाती है कि योजना के अंतर्गत जहां गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग तो लाभ से वंचित रह गए, वहीं दूसरी ओर उन लोगों को इस योजना के तहत सहायता उपलब्ध होती रही, जो इस योजना के अंतर्गत सहायता प्राप्त करने के पात्र ही नहीं थे। संबंधित योजना का भांडा इन्हीं आंकड़ों से फूट जाता है कि केवल नौ खण्डों में ही यह पाया गया कि सम्बन्ध्ति अवधि के दौरान ऐसे 123 व्यक्तियों को 41.86 लाख रुपये कर्ज के रूप में प्रदान कर दिए गए, जिनके नाम गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की अनुमोदित सूची में ही नहीं आते थे। कुछ स्थानों पर तो गरीबी की रेखा से नीचे के स्वरोजगारियों को इमदाद के रूप में अधिक धन प्रदान कर देने के मामले भी सामने आए हैं। इसके अलावा राज्य के कुछ स्थानों पर यह भी पाया गया है कि संबंधित इमदाद का पर्याप्त दुरुपयोग हुआ है।

खण्ड और जिला स्तर पर स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना समितियां जो आधारभूत स्तर पर योजना, कार्यान्वयन, समीक्षा तथा दोष निवारक उपायों की सिफारिश करने के लिए उत्तरदायी थी, की मास में एक बैठक होनी अपेक्षित थी। यह पाया गया है कि 13 खण्डों में 314 बैठकों के प्रति 123 बैठकें हुई। इस प्रकार 61 प्रतिशत की कमी थी। शेष छह खण्डों (कांगड़ा जिला) में कोई बैठकें नहीं हुई, क्योंकि खण्ड स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना समितियां गठित नहीं की गई। इसी प्रकार दो जिलों (कांगड़ा तथा सोलन) में राज्य स्तरीय स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना समिति ने निर्धारित अवधि के दौरान अपेक्षित 101 बैठकों के प्रति 31 बैठकें की। अतः 69 प्रतिशत की गिरावट रही।

कार्यक्रम की कार्यप्रणाली तथा निष्पादन पर निगरानी रखने के लिए उत्तरदायी राज्य स्तरीय समिति की बैठक कार्यक्रम के प्रारम्भ होने से लेकर यदाकदा ही हुई। इस प्रकार राज्य स्तर पर कार्यक्रम की प्रणाली तथा निष्पादन पर निगरानी नहीं रखी गई।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वरोजगारियों ने गरीबी रेखा को पार कर लिया है स्फीत्यात्मक आय के उत्पादन के लिए उनकी परिसम्पत्तियों के प्रबंधन की प्रगति का निरन्तर रुप से अनुसरण, अनुश्रवण तथा मूल्यांकन किया जाना था। जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों, खण्डों तथा बैंकों के निरीक्षण अधिकारियों द्वारा परियोजना की प्रगति के बारे अपनी अभ्युक्तियां अभिलिखित करने के लिए प्रत्येक स्वरोजगारी को विकास पत्रिकाएं देनी अपेक्षित थी जिनका अनुरक्षण नहीं किया गया। स्वरोजगारियों की परिसम्पत्तियों का वार्षिक प्रत्यक्ष सत्यापन भी अभियान के आधार पर किया जाना अपेक्षित था, यह भी नहीं किया गया। अनेक जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों खण्डों में कार्यक्रम का अपेक्षित अनुसरण तथा अनुश्रवण नहीं किया गया था।

खण्ड तथा जिला ग्रामीण विकास अभिकरण स्तर पर स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का गुणवत्ता अनुश्रवण सुनिश्चित करने की दृष्टि से सहायता प्राप्त परिवारों का विभिन्न स्तर के अधिकारियों द्वारा क्षेत्रीय निरीक्षणों के माध्यम से दिशा- निर्देशों में प्रत्यक्ष अनुश्रवण की अनुसूची की सिफारिश की गई थी। अनेक जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों में विभिन्न अधिकारियों द्वारा निर्धारित अनुसूची के प्रति वास्तविक रुप के किए गए क्षेत्रीय निरीक्षणों की संख्या दर्शाने वाले अभिलेखों का अनुरक्षण नहीं किया गया। जिला ग्रामीण विकास अभिकरणों ने संबंधित विभागों के अधिकारियों के लिए क्षेत्रीय निरीक्षणों की संख्या तक निर्धारित नहीं की थी।

सम्भावी लाभाग्रहियों की शिनाख्त के संदर्भ में मूल गतिविधियों का चयन तथा प्रत्येक मूल गतिविधि के परियोजना प्रतिवेदनों को निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार तैयार नहीं किया गया था। इस प्रकार कार्यक्रम के कार्यान्वयन से यह सुनिश्चित नहीं हो पाया कि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के योग्य मामलों में सहायता प्रदान की जाए। पांच वर्षों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 30 प्रतिशत परिवारों को आच्छादित करने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वार्षिक लक्ष्य नियत न करने तथा प्रत्यक्ष उपलब्धि में 43 प्रतिशत की कमी से कार्यक्रम का निकृष्ट कार्यान्वयन तथा अनुश्रवण इंगित हुआ। स्वरोजगारियों को बैंकों द्वारा सहायता निस्तारित करने तथा कर्ज की चुकौती पर निगरानी न करने से कार्यक्रम का कुप्रबंध भी सामने आया है। स्वरोजगारियों को सहायता निस्तारित करने में व्यापक अनियमितताएं सामने आई हैं। अनुपयुक्त सर्वेक्षण के कारण विशेष स्वर्ण जयन्ती ग्रामीण स्वरोजगार योजना, परियोजनाओं के अंतर्गत हाइड्राम्स संस्थापित न करना 10.47 करोड़ रुपये की विशेष परियोजनाओं की निकृष्ट योजना का संकेत माना गया है। खण्ड तथा जिला स्तरीय स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना समितियों की मासिक बैठकों के आयोजन में कमी रही है। जिला स्तरीय स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना समितियों की बैठकें नहीं की गई। स्वरोजगारियों द्वारा सृजित परिसम्पत्तियों का प्रत्यक्ष सत्यापन तथा आवधिक मूल्यांकन नहीं किया गया। कार्यक्रम के कार्यान्वयन का अनुश्रवण नहीं किया गया जैसा कि निर्धारित था। इस प्रकार राज्य में कार्यक्रम का कार्यान्वयन प्रभावशाली रूप से नहीं किया गया। गरीबी उन्मूलन तथा रोजगार कार्यक्रम में कोई विशेष सुधार दर्ज नहीं हुआ है।