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विशेष समाचार
महिलाएं ही नहीं पुरुष भी होते थे सती स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
शिमला (यू0एन0एन0) चाहे आप विश्वास करें या न करें मगर यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि पहाड़ी क्षेत्रों में प्रचलित रही सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई का शिकार केवल महिलाएं ही नहीं बनती थीं, चौंकिएगा नहीं पुरुष भी सती प्रथा के शिकार बनते थे। आमतौर पर यह धारणा प्रचलित रही है तथा आम आदमी आज भी सती प्रथा के बारे में यही विचार रखता है कि जिन दिनों सती प्रथा का प्रचलन था तब पति की मौत के बाद केवल संबंधित व्यक्ति की पत्नी या पत्नियां ही आग में जलकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर देती थीं। सती होने वाली दासियां या सेविकाएं भी होती थीं।

एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि हिमाचल प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में किसी राजा या ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्ति की मौत हो जाने पर उसकी पत्नियों के अलावा उससे जुड़े वे खास मर्द भी सती की बलि चढ़ जाते थे, जो मरने वाले व्यक्ति के बहुत करीबी होते थे। आमतौर पर सती की अमानवीय प्रथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक व्यापक रूप में फैली हुई थी और हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं था। राज्य के मण्डी नगर में कुछ सती-स्तम्भ रहे हैं जिन पर मृत राजाओं के नामों और उनकी चिता पर सती होने वाली रानियों और दासियों की संख्या दर्ज की होती थी। ऐसे स्तंभ मण्डी सुकेत मार्ग पर स्थित थे तथा इनमें मरने वाले राजा के साथ सती होने वाली रानियों, ख्वासों और दासियों के चित्र तक बनाए गए होते थे। अठारह सौ पैंतीस ई. में विदेशी पर्यटक जी. वीजने मण्डी आया था और उसने एक स्त्री को अपने पति की चिता पर सती होते हुए देखा था। उसका कहना है कि मृत पति की विधवा लड़खड़ाते हुए चल रही थी और उसे रंग-बिरंगें वस्त्रों से सजाया गया था तथा उसकी चाल से ऐसा लगता था कि उसे अफीम या भांग जैसा नशा करवाया गया था। ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी मूरक्राफट ने अठारह सौ बीस मे सुजानपुर टिहरा में रहते हुए कुल्लू की एक रानी जिसकी उमर चौदह वर्ष थी, की मृत्यु पर इस रानी की ग्यारह सेविकाओं को रानी के साथ सती होते हुए देखा था। रामपुर बुशैहर रियासत के राजा उग्र सिंह के मरने पर यह बात बेहद हैरानी की है कि उसकी पत्नियों के अलावा राजा की चिता पर महिलाओं के अलावा अनेक पुरूष भी सती हुए थे। ऐतिहासिक आंकड़ों के अनुसार इस सती नाटक में राजा उग्र सिंह के मरने पर जो 22 व्यक्ति सती हुए थे उनमें तीन रानियां नौ अन्य औरतें और शेष सभी पुरुष शामिल थे। राजा के साथ सती होने वाले पुरुषों में राजा का प्रथम चौबदार और राजा के एक या दो मंत्री भी शामिल थे।

गोरखा युद्ध के समय मृत गोरखा सरदार और सिपाहियों की पत्नियों के सती होने का उल्लेख उस युद्ध के अंग्रेज इतिहासकारों ने किया है। बिलासपुर में मलौण के किले के बाहर गोरखा कमाण्डर भक्ति थापा के युद्ध में मारे जाने पर उसकी विधवा को चिता पर जलते हुए अंग्रेजों ने निकटस्थ स्थान तारागढ़ से देखा था। उसी प्रकार नाहन के सामने जैथक के किले के बाहर गोरखा मृत सेनाधिकारियों और सिपाहियों की पत्नियों के सती होने का वृतान्त मिलता है, अन्य खश सामन्तों की भान्ति गोरखाओं में भी यह प्रथा प्रचलित थी। कहीं और हो न हो मगर हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में पुरूष भी सती प्रथा का शिकार बनते थे।