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हास्य, व्यंग्‍य
मरजानी रुत सावन की स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        डा. रजनीकांत
मुझे अपना बचपन याद आ रहा है। फुहारों का आनंद लेना, वह भी भीगे बदन। याद आते ही तन में झुरझुरी सी व्याप्त हो जाती है। बच्चे आजकल के भीगते कहां हैं? अब तो ये आलम है- ऋजेहल में पसरा हुआ है एक रेगिस्तान सा, आजकल बरसात में भीगता कोई नहीं।ह्य आजकल सावन की सूचना रेडियो या दूरदर्शन से ही प्राप्त होती है। और लोग छतरियां उठाकर निकल पड़ते हैं। कहीं इंद्रदेव कुपित होकर सारे का सारा पानी आज ही न उडेल दें। यहां तो हमसे न अधिक गर्मी बर्दाशत होती है न ही ठण्ड। कोमलांगियां गरमी के दिनों में मालरोड़ पर छाता लेकर निकल पड़ती हैं कि कहीं गोरा रंग काला न पड़ जाये। छाते का आविष्कार इनके बदन की सुरक्षा के लिए ही किया होगा ये तो यही जाने। हम तो बात कर रहे थे शैशव की। बकौल विवेक-ले गया बचपन उठाकर भीग जाने का हुनर।

आयेगी बरसात तो सब छतरियां लायेंगे लोग।

अब तो सावन आने की सूचना रेडियो अथवा दूरदर्शन से मिलती है। मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी। फिल्मी गीत रह-रहकर याद आते हैं। जेहन में गूंजते हैं। आया सावन झूम के।' उमड़ घुमड़ कर आई रे घटा।' 'मेरे नैना सावन भादो।' मेरा लाखों का सावन जाये। नहीं भूलेगी वो बरसात की रात। ये सावन का मौसम है बड़ा खिलदंड रोमानी। भावुक के विरहन की आᆳखों में बरबस आᆳसू निकाल दे। सावन और विरहन का एक अटूट रिश्ता है। यह वही जान सकती है। झूले पड़ गये हैं। औरतें श्रृंगार करके अपने पतिदेवों को रिझाती हैं। जिनके पतिदेव परदेस में है, वह क्या करें?

सौण म्हीणा सुहागा भागणी,

घड़ी मुड़ी सीस गुंदाये,

पहन पोसाका इनर विंदियां,

पीहंगा झूटण जाये।

दुख सुख सब मिटी गैः सारे

हरी जी के दरशन पाये।

बाहज श्याम दे

नारी सोहलड़े गाये।

सावन का महीना। नशीला, चिनाकर्षित करने वाला, मनमोहक। भंवरे कलियों पर मंडराने लग गये। सोलह श्रृंगार करके नारियां अपने पतियों को रिझाने का प्रयत्न कर रही हैं। केवल विरहन सोचों में गुम है। किसको श्रृंगार करके दिखाये? पतिदेव को झूठा पत्र लिख दिया कि तुम्हारी मां बीमार है। शीघ्र घर आईये, पतिदेव का प्रत्युतर-हमारा आना कठिन है। तुम मां का इलाज करवा देना। कैसे पतिदेव हैं? जो 1दय की कोमल भावनाओं को नहीं समझते। इन्हें तो नौकरी प्रिय है। अपने के लिए इनके 1दय में कुछ भी नहीं। ऐसे नीरस पतिदेव पर कौन जान छिड़केगी? कौन पुरोहित से पतिदेव के चिर से आने पर खिन्न होगी?

सौण के म्हीने नी मैं

बूरिया दूध दुहानियां

मेरी बूरी संदरी सदा दुधधारी,

मैं रामे नू खीर खुआनियां।

भादू के म्हीणे सइयो नी मैं

पादे नूं पुछण जाणियां

पढ़-पढ़ के पाधा पत्ररिया मेरे

श्यामें नें क्यों चिर लाया।

विरह सावन के दिनों में और भी लाव लश्कर सहित आता है। नागमति विरहन की बात और कौन जान सकता है? पृथ्वी चारों ओर से हरी-भरी दिख रही है। कुसुम्भी रंग के वस्त्र पहने वह और निखर गई है। नागमति का 1दय हिंडोले के समान झूल रहा है। विरह उसे झकोरे देकर झूटे दे रहा है।

हिय हंडोले जस डोलै मोरा। विरह झुलावे देई झंझोरा

बाट असूझ अथाह गंभीरा। जिउ बाउर सा भवै भंभीरा।

नागमति का 1दय पागल चारों ओर भंभीरे पतंगे की भांति आकाश में चक्कर लगा रहा है ं आप क्या जानो? एक विरहन के 1दय की बात। कभी किसी से दिल देकर देखो। फिर तड़फो तो पता चले। कहीं ऐसा अक्षम्य अपराध न कर बैठना। फिर आयु पर्यन्त पछताते रहोगे। सिर धुनते रहोगे। मुझे दोष न देना। छोड़िये नागमति जैसी सच्ची प्रेयसियों की आज कमी है। यूं कहिये अकाल है। सच्चा प्रेम तो वैसे भी गधे के सींग की तरह गायब हो गया है।

मौसम विभाग की भविष्य वाणी पर हमें तो विश्वास नहीं। आपका तो हमें पता नहीं। इधर दो-चार बादल आकाश में छितराये नहीं कि कर दी भविष्य वाणी कि सावन की आमद होगी। पर जब आसमान साफ हो जाता है तो अपनी गलती के लिये क्षमायाचना कर लेते हैं। इसके विपरीत मौसम साफ रहेगा कहें तो तय मानिये कि बादल खूब बरसेंगे। छाता तैयार अवश्य रखिये। अन्यथा सिर व्यर्थ ही गीला हो जाएगा। उन्नीस इक्कीस हो गई तो बुखार भी आ सकता है। इधर मौसम विभाग वालों ने भविष्यवाणी की आज बरसात हो सकती है। हमारे मुहल्ले के गोपाराम जी की जीभ की धार तेज हो गई। गिरधारी की अम्मा। आज तो खीर, मालपूये बना ही दो। देखो ना सावन झूम के आ रहा है। मेरी अच्छी राम प्यारी। मेरी फरमाईश पूरी कर दो ना।

आपकी चटोरी जीभ तो खाने से बाज नहीं आ सकती। चीनी का डिब्बा देखा। कल से खाली है।

देखो रामप्यारी मूड खराब न किया करो। साल में सावन बड़ी मुश्किल से आता है। और तुम हो मूड को बिगाड़ देती हो।' गाना शुरू कर गोपाराम जी ने।

एक डाल पर तोता बोले। एक डाल पर मैना।

और चीनी लाकर सब कुछ बनाकर ही दम लिया।

रामप्यारी को इतना मक्खन लगाया की पूछो मत। पूरे साल भर का मक्खन एक ही दिन में लगा दिया। इसे कहते हैं बटरिंग कला। पर कई बार इंद्रदेव को बटरिंग करने पर पानी नहीं बरसता। अडियल टटू की तरह रूठ जाता है। हवन, यज्ञ आयोजित होते हैं। तब कहीं जाकर इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं।

फिर कहीं तो बाढ़ का नजारा दर्शनीय होता है। मंत्री महोदय हैलीकाप्टर से बाढ़ग्रस्त स्थिति का अवलोकन करते हैं। टबों के टब आंसू आᆳखों से टपकाते हैं। अफसर लोग बाढ़ग्रस्त स्थिति का अध्ययन करके सामग्री अपनों में वितरित करते हैं और शायर, कविगण सावन के गीत लिखकर अमर होने की कामना करते हैं। वाकई सावन सतरंगी सपनों की मरजानी रुत ही तो है।

(यू.एन.एन.)