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हास्य, व्यंग
जायें तो जायें कहां? स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        डा. रजनीकांत
काफ़ी दिनों पहले के एक समाचार ने मुझे चौंका दिया था। ये तो प्रेमी-वर्ग के लिए दुखद समाचार था। प्रेमी -प्रेमिका मुम्बई में सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठे न बैठ सकेंगे। पुलिस ने 43 प्रेमी युग्लों को गिरफ्तार कर लिया। युवा प्रेमियों का व्यवहार प्दकमबमदज (अभद्र) करार दिया गया। ये बेचारे समुद्र किनारे प्रेम कलोल कर रहे थे। धत्‌! तेरे की! युवा प्रेमी कहां जायें? धरा पर न रहकर कहां जाएं? आकाश में तो प्रेमा लाप कर नहीं सकते? मुंबई उप-पार्षद नगर निगम के सुझावों को मद्देनजर रखते हुए यह आनन-फानन कार्रवाई की गई। ये तो युवा-प्रेमियों की सरासर तौहीन कही जाएगी? वे ये गाना गाएं तो कहां गाएं ? चलो इश्क लड़ाएं-चलो इश्क लड़ाएं। हे प्रभु ये तेरी दुनिया कैसी है रे? प्रेम करने वालों पर इतना अत्याचार! उस समय मुम्बई नगर निगम उप पार्षद बाबू भाई जी ने सुझाया कि नोटिस लगाये जाएं कि युवा प्रेमी जोड़े चुम्बन कलोल क्रिया, अत्याधिक प्रेम सार्वजनिक स्थलों पर प्रकट न करें। ये निरीह प्राणी जायें तो कहां जाएं? समुद्र किनारे चोंच न लड़ाएं तो कहां लड़ाएं? बड़े बुजुर्ग, पत्रकारों, मां-बाप की शिकायत पर नगर-निगम की नींद खुली! अरे ! बड़े बुजुर्गों ने तो सब कुछ देख दाख लिया। अब ये भावी पीढ़ी को भी आनंद के सागर में डुबकियां लगाने दो। पत्रकार लोगों को तो समाचारों की भूख होती है। उन्हें इनसे फर्सत कहां? युवावस्था में बंधन कौन झेले? उन्हें तो बंधन मुक्त रहने दो भाई।

बांद्रा पुलिस स्टेशन की पुलिस ने बांद्रा बेंडस्टैंड से 43 युवा जोड़े पकड़े। उसने 1250ध्. रु0 प्रति व्यक्ति वसूले तब कहीं उन्हें जाने दिया। प्रेम पर भी टैक्स। जो पैसे नहीं दे सके उन्हें बेल बाद में मिलेगी। विरोधी पक्ष वाले सुन रहे हैं अथवा नहीं। नींद से जागिये, जनाब! ये क्या हो रहा है? एक बार हो गया, आगे न होने देना!

चुंगी टैक्स बसूलिये, प्रेम के नाम पर। हम भी तो सख्त मिट्टी द्वारा निर्मित हैं। पैसा तो हाथ की मैल है, जानी। प्रेमी तो और ही वस्तु के बने होते हैं। ये संसार की परवाह कम ही करते हैं। आज भी सच्चे प्रेमियों की कमी नहीं इन्हीं के बलपर तो यह दुनिया चल रही है, मित्रो ! यह याद रखें।

विरोधी दल के नेता भी जागे! उन्होंने भी ब्यान दाग दिया। शहर में स्थानाभाव है। तो ये गरीब प्र्रेमी कहां जायें? ये पुलिस वाले तो पैसा बनाने पर तुले हैं। प्रेम के एक क्षण की तलाश में युवा प्रेमी कहां जायें? प्राइवेसी भी तो जरूरी है। गली के कोने, फिल्मी थियेटर भी तो सुरक्षित नहीं। बांद्रा बैंडस्टैंड में जरा सी अंतरंगता तो है। यहां आकर समुद्र तट पर बैठ गये तो क्या हो गया? पुलिस का अपना तर्क है कि वृद्ध -सयाने, माता-पिता, बच्चे इनके क्रिया-कलापों, कलोलों से तंग आ चुके। पुलिस में शिकायतें धड़ाधड़ हैं। नगर-निगम वाले सुन रहे हैं तो इन युवा जोड़ों पर सहानुभूति दर्शाइए। इनके लिये बांद्रा में दो-चार बड़े पार्क निर्मित करवा दें। ताकि ये दुःखी आत्मा सप्ताह में एक- दो बार चोंच लड़ा सकें। ये बड़े पुण्य का कार्य होगा। पुण्य अर्जित करना है तो ये कार्य शीघ्र कार्यान्वित करवाइए। ये युवा प्रेमी आपको निश्चित रूप से अशीश देंगे और राजनेताओ! आपको वोट भी अवश्य देंगे। पुण्य भी होगा और फलियां भी आपके हिस्से ! विलम्ब किस बात का? आज ही नीति बनायें। महीने दो महीने में पार्क बन कर तैयार हो जायेंगे। ये युवा प्रेमी फिर आहें नहीं भरेंगे। आपके गुणगान भी गायेंगे। मेरी तो यह भी सलाह है कि ऐसे पार्क देश के सभी बड़े-छोटे नगरों में बनाए जाएं और इस कार्य को विकास कार्यों से भी अधिक प्राथमिकता दी जाए।

(यू.एन.एन.)