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हास्य, व्यंग
सुनो जी, कहां जाएं पति बेचारे? स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        डा. रजनीकांत
हर जगह जहां देखो, समाचार पत्र, पत्रिकाओं एवं केवल टी.वी. में यत्र-तत्र महिलाओं के अत्याचार की बात उभर कर सामने आती है। मैं मानता हूं कि महिलाओं पर अत्याचार होते आए हैं। पुरुषों से अधिक स्त्री ही स्त्री की दुश्मन देखी जा सकती है। ननद अथवा सासु-मां के रूप में स्त्री स्त्री पर अत्याचार करती दिख जाती है। स्त्री के अत्याचार को खूब प्रचार मिला है। किन्तु बेचारे पुरुष पर अत्याचार की बात को कम ही उठाया जाता है। कोई इस निरीह प्राणी पर दयाभाव तक नहीं दिखाता। इस बेचारे ने किसके मांह मारे हैं? दुनिया बहुत बड़ी है। मियां! जिसका कोई नहीं, उसका तो खुदा है यारो। मुझे अमिताभ द्वारा गाया ÷लावारिस' के गीत का अनायास स्मरण हो आया है। ऊपर वाले की लाठी में बहुत शक्ति होती है।

मुझे बाल्यकाल की वह घटना कभी नहीं भूलती। हम किराए के मकान में रहते थे। पड़ौस में पति-पत्नी दोनों सरकारी सेवा में कार्यरत थे। दो उनके बच्चे थे। रविवार को दोनों में खटपट हो गई। पति बेचारा बाहर आंगन में चारपाई डालकर सो गया। पत्नी ने आव देखा न ताव, चुपके से पानी की बालटी उठाई और पतिदेव के ऊपर गिरा दी, सभी आश्चर्य चकित। ये इस वीर पत्नी को क्या सूझी? पति से बदला लेने का अनूठा ढंग कोई इस वीरांगना से सीखे?

वैसे मेरे साहित्यिक मित्रा ने महिला का संधिविच्छेद यूं किया। महि+हिला=महिला। जो धरती को हिला दे, वही महिला कहलाए। इस बाल्यकाल की घटना ने पति की खाट तो हिला दी। दूध का जला छाछ को भी फूंक- फूंक कर पीता है। मांए अपनी बेटियों को ससुराल विदा करते समय कान में फूंक मार ही देती हैं। साम, दाम, दंड की नीति से पतिदेव को नियंत्रण में रखना। पहला दांव जिसने चला दिया, वही विजयी। विजयी भव। ÷फर्स्ट इम्प्रैशन इज दि लास्ट इम्प्रैशन' बेटी, पराजित मुद्रा में कभी न रहना। सदैव विजयी मुद्रा को अपनाना। पूर्ण शक्ति लगाकर एक बार पतिदेव को नियंत्रित कर लो, बस। जीवन की जंग तुम जीत लोगी।

मां की शिक्षा, सर माथे। एक बार मर्द काबू कर लिया तो परिवार के शेष सदस्य तो जेब में होंगे। नई पीढ़ी की भावी माताएं सुन रही हैं न। यह मूलमंत्र भूल न जाना। ये मूलमंत्र गांठ बांधकर जीवन के समर में कूद जाओ। विजय तुम्हारे कदम चूमेगी। उत्पीड़ित पति किससे कहे? कौन सुनेगा? जिस क्षेत्र में देख लो, महिलाएं ही महिलाएं दिखाई दे रही है। कई नियम-अधिनियम उनके पक्ष में बन गए हैं। पति महाशय जी, चुपचाप बतीसी मुंह के अंदर रखकर, पत्नी की सेवा-सुश्रुषा करो। अन्यथा छोटी सी दफा के अंतर्गत कारागार में चक्की पीसते दृष्टिगोचर होवोगे। यही हालात रहे तो भावी पति किचन में रोटी बेलते, बर्तन साफ करते दिखेंगे। पत्नी की चापलूसी में पत्नी प्रशंसा आख्यान, पत्नी चालीसा गाते मिलेंगे। मित्रो! यह दिन भी दूर नहीं। बस... देखते जाओ।

एक बात निश्चित है पति अपनी पत्नी से खौफ अवश्य खाता है। अपने हृदय पर हाथ रखकर सत्य-सत्य बताना। घर के अंदर प्रवेश होते ही पति महोदय की घबराहट स्पष्ट चेहरे पर दिख जाती है। चपड़ासी तक बॉस को दूसरी ;वोहद्ध के विषय में ब्लैक मेल करते दृष्टिगोचर हो जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व दि ट्रिब्यून के समाचार ने मुझे चौंका दिया था। उत्पीड़ित पति और उनके परिवार के सदस्य 11 दिसम्बर को मानव अधिकार के दिन, घरेलू हिंसा एवं उग्रवादिता के विरोध में उपवास रखेंगे। यह उत्पीड़न पत्नियों द्वारा किया जा रहा है। पत्नी अत्याचार विरोधी मंच के प्रधान आर.पी. चुघ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन से सहायता की गुहार की है।

चुघ साहिब, वाकई आपने बहुत बड़ा काम हाथ में लिया है। पत्नी अत्याचार विरोधी मंच का गठन करके लाखों निरीह प्राणियों को नैतिक प्राश्रय दिया है। सभी को जीने का समानाधिकार है। ये मंच इन बेचारे पतियों को सम्बल प्रदान कर सकता है। इन निरीह प्राणियों ने प्रभु के मांह तो मारे नहीं, फिर इन पर इतना अत्याचार क्यों?

मेरे पड़ोसी की तो बांछे खिली हैं। इन पत्नियों के होश अब ठिकाने आएंगे। कहने लगे मानिए, ये संगठन तो मेरे लिए सहायक सिद्ध होगा। रोते-रोते उन्होंने मुझे पीठ दिखाई नीले दाग स्पष्ट दिख रहे थे। ये मेरी शिक्षिता पत्नी की करतूत है। शर्मा जी, आप तो लेखक है। लेखनी के माध्यम से आप मेरी बात समाज के समक्ष रखेंगे। इनकी दादागिरी से रब्ब बचाए? हाथ चलाने में इनकी दिलेरी देखिए। मैं भी हाथ चला सकता हूं। पर तब मेरे ऊपर सभी धाराएं, उपधाराएं, नियम, कानून लग जाएंगे। दाता मेरा पहला साक्षी है। मेरे बदले तो वही लेगा। यह मंच सुगठित हो, मैं भी प्रयत्न करूंगा। मेरा जैसा व्यक्ति भी अपनी बात रख सकेगा।

÷गुस्सा थूकिए' वर्मा जी। गृहस्थी में सहनशक्ति, सामंजस्य तो रखना ही पड़ता है। अपना घर संवारिए, सजाइए। बात जब सार्वजनिक हो जाए तो जगहंसाई होती है। प्रेम की नींव पर गृहस्थ जीवन चलाइए। शर्मा जी, उपदेश तो मैं भी दे सकता हूं। कलम की दुनिया से बाहर निकलकर देखिए। जो तन लागे सो तन जाने। मैं वर्मा जी का मुख देखे जा रहा था। मैंने चुपचाप वहां से खिसकने में भलाई समझी। यथार्थ बात मुझे कचोटे जा रही थी। मेरे पड़ौसी की भांति उत्पीड़ित पति और भी कई होंगे। जो घर नहीं पूछा, वही सुखी। चुघ साहब के मंच ने कई निराश पतियों को आशा की किरण प्रदान की थी। वैसे आशा और विश्वास पर ही दुनिया कायम है। उत्पीड़ित पति ऐसे मंचों से सम्पर्क कर अपनी आत्माभिव्यक्ति बखूबी कर सकते हैं।

(यू.एन.एन.)