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स्वास्थ्य
बच्चो में नींद में चौंकने की समस्‍या स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       डॉ. नन्द लाल गुप्ता
असुरक्षा व डर की भावनाओं का चोली दामन का साथ है। व्यक्ति तभी डर महसूस करता है जब वह असुरक्षित होता है। इस संदर्भ में डॉ. आशा रानी बोहरा ने शताब्दी पुरानी मूर्तियों में माता का बच्चे को कंधे पर बाईं ओर पकड़े हुए दिखाने का उल्लेख बखूबी किया है, बच्चे को बाईं ओर पकड़ने से केवल दाहिने हाथ को काम काज के लिये स्वतंत्र रखना ही नहीं बल्कि इसका विशेष महत्व इस बात से है कि बच्चा मां के दिल की धड़कन को सुनकर अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है। वास्तव में सुरक्षा कवच के क्षीण होने से बच्चे में डर पैदा होता है। दैनिक जीवन में बच्चों में नींद में भयभीत होने की व्यवहार समस्या प्रायः देखने को मिलती है।

वैसे तो इस समस्या के कारणों का निश्चित प्रमाण पाना असम्भव है, फिर भी यह विश्वास सर्वमान्य है कि ऐसी समस्याएं दिन-प्रतिदिन की परिस्थितियों में चेतन व अचेतन दिमाग पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण होती हैं। बच्चों के पारिवारिक वातावरण, टेलीविजन देखने, पढ़ने या खेलने की स्थितियों से उत्पन्न असुरक्षा से ही नींद में होने वाली समस्याएं उभरती हैं। कई बार तो माता पिता या परिवारजन बच्चों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिये भूत-प्रेत व जंगली जानवर इत्यादि की कथा सुना उन्हें डराते हैं, जैसे बच्चा समय पर न सोए तो माता-पिता कहते हैं कि साधाू बाबा या भूत आएगा व उसे पकड़ कर ले जाएगा। कई परिवारों में तो डरावनी कहानियां सुनाने की प्रथा बरसों से चली आ रही है।

आधुनिक जीवन में बढ़ते तनाव व बेसहारा महसूस करने से चिंताएं बढ़ती जा रही हैं। अभिभावकों की यह चिंताएं बच्चों के आत्मविश्वास एवं सुरक्षा की भावना को दुष्प्रभावित करती हैं। टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले अधिकतर धारावाहिक एवं फिल्मों में हिंसा व नकारात्मक अवयव प्रमुख होते हैं जिनका बच्चों पर कुप्रभाव पड़ता है। विशेषतः टी0वी0 में डरावनी घटनाओं को रात्रि में देखने से बच्चों में सोते-सोते चौंक कर भयभीत होने के प्रमाण प्रत्यक्ष रूप में मिल रहे हैं।

सामान्यतः यह व्यवहार समस्या 2 वर्ष की आयु से आरम्भ होती है और 3 से 6 वर्ष की आयु में अधिक हो जाती है। रात्रि के शुरू में ही यानि 1 से 4 घंटे में बच्चा नींद में भयभीत होकर चौंकता है जिस कारण उसके दिल की धाड़कने बढ़ जाती हैं, वह चिल्लाता है, सांस रोकता है। इस अवस्था में कई बार न समझ आने वाली बातें करता है और फिर सो जाता है। ऐसा समझा जाता है कि बालक चौंकने से पहले कोई डरावना स्वप्न देखता है। पर जागने पर वह न तो स्वप्न को याद कर पाता है और न ही घटनाव्म को।

ऐसी ही नींद की समरूपी एक अन्य समस्या इस तरह का भयावह अनुभव वह रात्रि के दूसरे भाग में करता है, जिसमें अधिाकतर वह छाती पर भार महसूस करता है। वह इस सारी घटना का वर्णन दूसरी सुबह कर पाता है और स्वप्न भी उसे स्मरण रहता है। ऐसी समस्या से ग्रस्त बच्चों के माता पिता चिंतित हो कई भ्रांतियों में उलझ जाते हैं जैसे जादू-टोना करना, भूत-प्रेत का लगना या दैवी प्रकोप होना आदि। इससे समस्या और जटिल हो जाती है। ऐसी समस्याओं के समाधान हेतु कुछ सुझाव निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं जो अभिभावकों के लिये सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

1. अभिभावकों को भ्रांतियों में न पड़कर यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिये कि यह समस्या अकारण नहीं होती। भूत प्रेत, तांत्रिक या दैवी प्रकोप से होना भी इसका कारण नहीं है। वास्तव में यह समस्याएं दैनिक जीवन में भयपूर्ण घटनाओं व तनावों की तीव्रता व अधिाकता के कारण भयावह रूप में प्रकट होती हैं।

2. टी0 वी0 के लोकप्रिय कार्यव्मों में दिखाई जाने वाली अधिकतर घटनाएं अवास्तविक होती हैं। बच्चों में इन घटनाओं का वर्णन इस प्रकार करना चाहिये कि उनमें अनावश्यक डर न पैदा हो। संवेदनशील बच्चों को ऐसे प्रोग्राम कम दिखाने चाहियें, रात के समय पर तो बिल्कुल भी नहीं।

3. जब बच्चा चौंक कर चिल्लाए तो माता-पिता को बच्चों के पास शीघ्र पहुंचना चाहिये। उसे चूम कर सहलाकर या थपथपाकर, सहारा देकर यह महसूस करवाएं कि वह सुरक्षित स्थिति में हैं व उसके माता-पिता उसके साथ हैं। यदि वह पूरी तरह नहीं जागता है तो भी सहारा देकर अपनी उपस्थिति से उसे अवगत करवाते रहें। उसे बार-बार यह विश्वास दिलाएं कि वे उसे डर से बचा सकते हैं। मधाुर व धाीमी आवाज में उसे कहते रहें कि उसका सोना उसे सुरक्षा प्रदान करेगा।

थके होने के कारण या गहरी नींद से जागने के कारण माता-पिता प्रायः ऐसी स्थिति में वेधित हो जाते हैं। झुंझला कर की गई कोशिश भी विपरीत ही पड़ती है, क्योंकि बालक इससे और भी भयभीत हो जाता है। कभी-कभी फिर सोने के पश्चात वह नींद में धीरे-धीरे चिल्लाता रहता है। इस स्थिति में उसके साथ नहीं सोना चाहिये क्योंकि इससे बालक को यह संदेश जाएगा कि उसका डर वास्तविक है और उसे निरंतर सहारे की जरूरत है। यदि कोई उसके साथ सोता रहता है तो उसकी यह आदत दूसरे के साथ सोने की ही बन जाएगी।

4 स्नेह व प्यार से बच्चों को दैनिक जीवन की घटनाओं को अभिव्यक्त करने के लिये प्रेरित करना चाहिये। जब बालक उनका वर्णन कर रहा हो तो उसे धयानपूर्वक एवं समर्पण से सुनें। उसे स्वप्न बताने के लिये भी प्रेरित करें। बड़े बालक डरावने स्वप्न बताने में समर्थ होते हैं। यदि बालक स्वप्न न भी बता पाए, क्योंकि कुछ समस्याओं में उसे स्वप्न याद नहीं रहता है तो उससे नाराज होने या दुनकारने से समस्या बढ़ जाती है।

5 बालक को निरंतर संतुलित प्यार व सुरक्षा दें। उसके सामने अपनी चिंताओं की अभिव्यक्ति कम करें तथा यह सुनिश्चित करें कि समान्य सी घटनाओं को वह डरावनी घटना के रूप में ग्रहण न कर ले।

6 बालक को ऐसे खेलों तथा गतिविधियों के लिए प्रति प्रेरित करें जहां शारीरिक व्यायाम बेरोक-टोक हो एवं उसे अन्दर से आनन्द मिले, साथ ही दिनचर्या से उत्पन्न होने वाले तनाव सुचारू रूप से प्रवाहित होते रहें। सकारात्मक व वांछित व्यवहार के लिये उसे निरंतर प्रोत्साहित कर उसका आत्मविश्वास बढ़ाते रहें। उसके कपड़े, खेल, बातें व्यवहार व अन्य कार्यकलापों में से प्रशंसनीय गुणों की सराहना निरंतर की जानी चाहिये जिससे उसमें सुरक्षा की भावना बढ़ती रहे तथा उसका विकास एक स्वस्थ एवं जागरूक बालक की तरह हो।

(यू.एन.एन.)