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लेख
गोरखों का हिमाचल पर आक्रमण स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक        डा. नवीन शर्मा
हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में सत्तारूढ़ रहे राजवंशों में कांगड़ा का कटोच राजवंश सर्वाधिक उल्लेखनीय राजवंश रहा है। यूं तो इस राजवंश में अनेक नामी शासक हुए हैं परन्तु इस वंश के शासक संसारचंद को वंश के अत्यंत महत्वपूर्ण शासकों में स्वीकार किया जाता है। इनका शासनकाल कांगड़ा इतिहास का कूटनीति काल स्वीकार किया जाता है, क्योंकि इस काल में कांगड़ा से सम्बंधित सभी शक्तियों ने कांगड़ा के सशक्त दुर्ग पर अधिकार बनाने के लिये किसी न किसी तरह कूटनीति का सहारा लिया।

राजा संसारचंद के शासनकाल में गोरखे विशाल गोरखा साम्राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से अपना अभियान आरंभ कर चुके थे। गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा 1803 ई. के आरम्भ में गढ़वाल के पश्चात देहरादून पहुंच चुका था तथा पहाड़ी रियासतों पर आक्रमण करने की योजना बना रहा था। मूरक्राफ्ट ने अपनी यात्रा विवरण में यह उल्लेख किया है कि राजा संसार चंद और गोरखों के मध्य एक संधि हुई, जिसके अंतर्गत सतलुज नदी को सीमा माना गया। संधि के द्वारा यह निश्चित किया गया कि गोरखे सतलुज नदी को पार नहीं करेंगे। मूरक्राफ्ट ने इस संधि के संबंध में जो विवरण दिया है वह अति संक्षिप्त है। किसी अन्य माध्यम से हमें इस संधि के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती। ऐसा प्रतीत होता है कि संसार चंद और गोरखों के मध्य मूरक्राफ्ट द्वार वर्णित संधि उस समय हुई होगी जिस समय कांगड़ा तथा हिण्डूर की संयुक्त सेनाओं का सामना करने के लिए सिरमौर रियासत के राजा करण प्रकाश ने गोरखों से सहायता प्राप्त की और गोरखा सेनापति अमर सिंह द्वारा भक्ति थापा के नेतृत्व में सेना भेजी गई।

कांगड़ा और हण्डूर की संयुक्त सेना ने गोरखों द्वारा करण प्रकाश की सहायता के लिए भेजी गई सेना को सफल नहीं होने दिया। संभावना यही है कि इस घटना के पश्चात गोरखों ने संसार चंद से संधि कर सतलुज नदी को सीमा माना होगा। संसार चंद द्वारा पुनः सिरमौर रियासत के विरुद्ध कार्रवाई करने पर और पहाड़ी राजाओं के निमंत्रण पर अमर सिंह स्वयं सेना सहित आगे बढ़ा। यदि अठारह सौ पांच ईस्वी के अंत में गोरखों द्वारा सतलुज नदी पार कर कांगड़ा क्षेत्र में प्रवेश करने अथवा इस क्षेत्र में कटोच राजा से भिड़ंत होने के पश्चात यह संधि हुई होती तो इसका उल्लेख किसी समकालीन अथवा निकट समकालीन लेखक ने किया होता।

ऐसी स्थिति में यह स्वीकार करना अनुचित नहीं माना जाना चाहिए कि मूरक्राफ्ट ने जिस संधि का उल्लेख किया है व संधि गोरखों द्वारा सतलुज नदी पार करने अर्थात कांगड़ा क्षेत्र में प्रवेश प्राप्त करने से पूर्व की गई संधि हो सकती है। गोरखे इस संधि के पश्चात प्राप्त होने वाले समय का पूर्ण लाभ उठाते रहे। संसार चंद संधि के कारण निश्चिंत होकर गोरखों की कूटनीति से अनभिज्ञ रहा और उसने स्वयं को गोरखों से असुरक्षित नहीं समझा। कटोच राजा ने गोरखों के सम्भावित आक्रमण का सामना करने के लिए उपयुक्त प्रबंध नहीं किए। वह इस दिशा में उदासीन बना रहा। इस समय में गोरखे संधि की आड़ में स्वयं को सुदृढ़ बनाने तथा क्षेत्रों पर आक्रमण करने की तैयारी में लगे रहे।

गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा थी। उसे अपना उद्देश्य पूर्ण करने के लिए उस समय अवसर प्राप्त हो गया जब उसने संसार चंद को आक्रमण के प्रति लापरवाह और सैनिक दृष्टि से दुर्बल होने के साथ चारों और से शत्रुओं द्वारा घेरा हुआ पाया। यहां उन कुछ घटनाओं तथा कारणों पर विचार करना उचित होगा, जिन घटनाओं तथा कारणों ने गोरखों को पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़कर कांगड़ा पर आक्रमण करने में सशक्त भूमिका निभा, गोरखों का मार्ग सरल बना दिया।

संसार चंद कांगड़ा दुर्ग पर अधिकार कर लेने के पश्चात पहाड़ी क्षेत्रों का प्रमुख शासक बन जाने का इच्छुक था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अनेक पहाड़ी रियासतों पर आक्रमण किए। कुछ रियासतों के कांगड़ा से पिछले अनेक वर्षों से कटू संबंध चल रहे थे। मण्डी और बिलासपुर रियासतें अनेक वर्षों से कांगड़ा की शत्रु थी। जिस समय मण्डी की गद्दी पर राजा गुरसैन सत्तारूढ़ था उस समय कांगड़ा ओर मण्डी रियासत के संबंध भी अच्छे नहीं थे। गुरसैन ने कांगड़ा के विरुद्ध बिलासपुर से समझौता किया और हटली नामक स्थान पर इन दोनों पक्षों के मध्य लड़ाई हुई। जिस समय 1686 ई. में सिद्धसेन मण्डी का शासक बना उस समय मंडी राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई। 1706 ई. में उसने हटली पर पुनः अधिकार कर लिया और कांगड़ा के कुछ क्षेत्र भी मण्डी राज्य में मिला लिए। समय समय कांगड़ा का शासक हमीर चन्द था। उपरांत संसार चंद के सत्तारूढ़ होने पर उसके द्वारा मण्डी पर आक्रमण किया गया। इस समय मण्डी रियासत का शासक ईश्वरीसेन केवल पांच वषर् की आयु का बालक था। संसार चदं ने इस स्थिति का लाभ उठाकर न केवल मंडी पर आक्रमण किया अपितु ईश्वरीसेन को भी बंदी बना लिया। मण्डी के विरुद्ध आक्रमण में कुल्लू तथा सुकेत रियासतों ने कांगड़ा का साथ दिया। मण्डी से प्राप्त किया गया हटली का वह जिला जिसके लिए उपरोक्त राज्यों में परस्पर संघर्ष होता रहता था, सुकेत रियासत को दिया गया। कुल्लू रियासत को चौहरी नामक जिला उपलब्ध हुआ। मण्डी के विरुद्ध किए गए आक्रमण का संसार चंद को भी लाभ पहुंचा। उसने नन्तपुर नामक जिला कांगड़ा के साथ मिला लिया। मण्डी के शासन का भार वहां के मंत्रियों पर छोड़ दिया गया। संसार चंद ने यह व्यवस्था भी की कि मण्डी रियासत एक लाख रुपए प्रति वर्ष नजराने के रूप में प्रदान करेगी।

1789 ई. में धर्म प्रकाश के सिरमौर रियासत का शासक बनने पर इस रियासत को संसार चंद के आक्रमण का सामना करना पड़ा। इसी अवधि में कटोच राजा ने बिलासपुर रियासत पर भी आक्रमण किया। इस समय बिलासपुर का शासक महा चंद था। बिलासपुर और मण्डी के राजा इस स्थिति में नहीं थे कि वह संसार चंद का सामना कर पाते। उन्होंने सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश से संसार चंद के विरुद्ध सहायता मांगी। इस सहायता के बदले इन राज्यों ने यह स्वीकार किया कि सिरमौर को दो लाख रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। इसके अतिरिक्त सिरमौर के राजा और संसार चंद के विरुद्ध सहायता देने पर और अधिक धन देने का आश्वासन भी दिया गया।

उपलब्ध प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि इस समय मण्डी और बिलासपुर राज्य कांगड़ा का मुकाबला करने के लिए एक हो गए थे। संसार चंद का विरोध करने के लिए धर्म प्रकाश भी उक्त वर्णित राजाओं से मिल गया। कांगड़ा की सेना का नेतृत्व संसार चंद के भाई फ्तेह चंद द्वारा किया गया। मंडी, बिलासपुर और सिरमौर राज्यों की संयुक्त सेना ने कटोच सेना का सामना किया, परंतु इस संयुक्त सेना को पराजय का सामना करना पड़ा। लड़ाई में सिरमौर का शासक धर्म प्रकाश मारा गया। इस घटना से कांगड़ा और सिरमौर के मध्य पारस्परिक संबंधों में अधिक तनाव आया। इससे पूर्व इन दोनों रियासतों के पारस्परिक संबंध इतने कटू नहीं थे। धर्म प्रकाश की मृत्यु के कारण उत्पन्न हुई स्थिति के ध्यानार्थ इस बात को नकारा नहीं जा सकता था कि अब भविष्य में संसार चंद को सिरमौर के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ सकता था। संसार चंद ने इस रियासत द्वारा किसी प्रकार का विरोध करने से पूर्व इसे क्षति पहुंचाने की नीति अपनाई;

पहाड़ी राजाओं के संदर्भ में संसार चंद किस प्रकार की नीति का आश्रय ले रहा था इसका उदाहरण चंबा रियासत के प्रति अपनाइ गई नीति भी रही है। यद्यपि संसार चंद ने 1788 ई. में चंबा के राजा राज सिंह के साथ संधि की, परंतु संसार चंद की अक्रामक गतिविधियों के कारण इन दोनों राज्यों के मध्य भी कटू संबंध बने। संसार चंद ने चंबा के अंतर्गत आने वाले रेहलू नामक क्षेत्र पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। इस क्षेत्र की रक्षा करते हुए 1794 ई. में चंबा का राजा राज सिंह मारा गया। उपरांत संसार चंद ने वह क्षेत्र राज सिंह के पुत्र ईश्वरी को इस शर्त पर लौटाया कि चंबा रियासत कांगड़ा को प्रति वर्ष सतरह हजार मन चावल प्रदान करेगी।

इस समय नालागढ़ रियासत का राजा राम सिंह सिरमौर के राजा का साथी था। संसार चंद ने नालागढ़ के राजा को सिरमौर रियासत के विरुद्ध प्रयोग कर इस रियासत को क्षति पहुंचानी चाही। संसार चंद ने अपना उद्देश्य पूर्ण करने के लिए नालागढ़ के राजा को सिरमौर का विरोध करने के बदले उन बारह ठकुराइयों का प्रधान बना देने का वचन दिया, जिन ठकुराईयों पर पहले बिलासपुर रियासत का आधिपत्य था, परंतु उपरांत इन्हें सिरमौर ने अपने अधीन कर लिया था।

गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा थी। उसे अपना उद्देश्य पूर्ण करने के लिए उस समय अवसर प्राप्त हो गया जब उसने संसार चंद को आक्रमण के प्रति लापरवाह और सैनिक दृष्टि से दुर्बल होने के साथ चारों और से शत्रुओं द्वारा घेरा हुआ पाया। यहां उन कुछ घटनाओं तथा कारणों पर विचार करना उचित होगा, जिन घटनाओं तथा कारणों ने गोरखों को पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़कर कांगड़ा पर आक्रमण करने में सशक्त भूमिका निभा, गोरखों का मार्ग सरल बना दिया।

संसार चंद कांगड़ा दुर्ग पर अधिकार कर लेने के पश्चात पहाड़ी क्षेत्रों का प्रमुख शासक बन जाने का इच्छुक था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अनेक पहाड़ी रियासतों पर आक्रमण किए। कुछ रियासतों के कांगड़ा से पिछले अनेक वर्षों से कटू संबंध चल रहे थे। मण्डी और बिलासपुर रियासतें अनेक वर्षों से कांगड़ा की शत्रु थी। जिस समय मण्डी की गद्दी पर राजा गुरसैन सत्तारूढ़ था उस समय कांगड़ा ओर मण्डी रियासत के संबंध भी अच्छे नहीं थे। गुरसैन ने कांगड़ा के विरुद्ध बिलासपुर से समझौता किया आैर हटली नामक स्थान पर इन दोनों पक्षों के मध्य लड़ाई हुई। जिस समय 1686 ई. में सिद्धसेन मण्डी का शासक बना उस समय मंडी राज्य की शक्ति में वृद्धि हुई। 1706 ई. में उसने हटली पर पुनः अधिकार कर लिया और कांगड़ा के कुछ क्षेत्र भी मण्डी राज्य में मिला लिए। समय समय कांगड़ा का शासक हमीर चन्द था। उपरांत संसार चंद के सत्तारूढ़ होने पर उसके द्वारा मण्डी पर आक्रमण किया गया। इस समय मण्डी रियासत का शासक ईश्वरीसेन केवल पांच वर्ष की आयु का बालक था। संसार चदं ने इस स्थिति का लाभ उठाकर न केवल मंडी पर आक्रमण किया अपितु ईश्वरीसेन को भी बंदी बना लिया।

मण्डी के विरुद्ध आक्रमण में कुल्लू तथा सुकेत रियासतों ने कांगड़ा का साथ दिया। मण्डी से प्राप्त किया गया हटली का वह जिला जिसके लिए उपरोक्त राज्यों में परस्पर संघर्ष होता रहता था, सुकेत रियासत को दिया गया। कुल्लू रियासत को चौहरी नामक जिला उपलब्ध हुआ। मण्डी के विरुद्ध किए गए आक्रमण का संसार चंद को भी लाभ पहुंचा। उसने नन्तपुर नामक जिला कांगड़ा के साथ मिला लिया। मण्डी के शासन का भार वहां के मंत्रियों पर छोड़ दिया गया। संसार चंद ने यह व्यवस्था भी की कि मण्डी रियासत एक लाख रुपए प्रति वर्ष नजराने के रूप में प्रदान करेगी।

1789 ई. में धर्म प्रकाश के सिरमौर रियासत का शासक बनने पर इस रियासत को संसार चंद के आक्रमण का सामना करना पड़ा। इसी अवधि में कटोच राजा ने बिलासपुर रियासत पर भी आक्रमण किया। इस समय बिलासपुर का शासक महा चंद था। बिलासपुर और मण्डी के राजा इस स्थिति में नहीं थे कि वह संसार चंद का सामना कर पाते। उन्होंने सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश से संसार चंद के विरुद्ध सहायता मांगी। इस सहायता के बदले इन राज्यों ने यह स्वीकार किया कि सिरमौर को दो लाख रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। इसके अतिरिक्त सिरमौर के राजा और संसार चंद के विरुद्ध सहायता देने पर और अधिक धन देने का आश्वासन भी दिया गया।

उपलब्ध प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि इस समय मण्डी और बिलासपुर राज्य कांगड़ा का मुकाबला करने के लिए एक हो गए थे। संसार चंद का विरोध करने के लिए धर्म प्रकाश भी उक्त वर्णित राजाओं से मिल गया। कांगड़ा की सेना का नेतृत्व संसार चंद के भाई फ्तेह चंद द्वारा किया गया। मंडी, बिलासपुर और सिरमौर राज्यों की संयुक्त सेना ने कटोच सेना का सामना किया, परंतु इस संयुक्त सेना को पराजय का सामना करना पड़ा। लड़ाई में सिरमौर का शासक धर्म प्रकाश मारा गया। इस घटना से कांगड़ा और सिरमौर के मध्य पारस्परिक संबंधों में अधिक तनाव आया। इससे पूर्व इन दोनों रियासतों के पारस्परिक संबंध इतने कटू नहीं थे। धर्म प्रकाश की मृत्यु के कारण उत्पन्न हुई स्थिति के ध्यानार्थ इस बात को नकारा नहीं जा सकता था कि अब भविष्य में संसार चंद को सिरमौर के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ सकता था। संसार चंद ने इस रियासत द्वारा किसी प्रकार का विरोध करने से पूर्व इसे क्षति पहुंचाने की नीति अपनाई;

पहाड़ी राजाओं के संदर्भ में संसार चंद किस प्रकार की नीति का आश्रय ले रहा था इसका उदाहरण चंबा रियासत के प्रति अपनाइ गई नीति भी रही है। यद्यपि संसार चंद ने 1788 ई. में चंबा के राजा राज सिंह के साथ संधि की, परंतु संसार चंद की अक्रामक गतिविधियों के कारण इन दोनों राज्यों के मध्य भी कटू संबंध बने। संसार चंद ने चंबा के अंतर्गत आने वाले रेहलू नामक क्षेत्र पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। इस क्षेत्र की रक्षा करते हुए 1794 ई. में चंबा का राजा राज सिंह मारा गया। उपरांत संसार चंद ने वह क्षेत्र राज सिंह के पुत्र ईश्वरी को इस शर्त पर लौटाया कि चंबा रियासत कांगड़ा को प्रति वर्ष सतरह हजार मन चावल प्रदान करेगी।