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लेख
चम्बा का संक्षिप्त इतिहास (2) स्रोत        यू.एन.एन.
स्‍्थान       शिमला
लेखक       
सम्बन्धित अभिलेखों से हमें यह जानकारी उपलब्ध होती है कि सलवाहन वर्मन के दो पुत्र सोम वर्मन और असत वर्मन थे जिन्होंने सलवाहन वर्मन के बाद सत्ता सम्भाली। सोम वर्मन 1060 ई0 में सत्तारूढ़ हुआ। उसके बाद असत वर्मन 1080 ई0 में गद्दी पर बैठा। चम्बा के अनेक राजाओं के ही समान इन राजाओं के शासनकाल के बारे भी कोई विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। राजतरंगणी से हमें पता चलता है कि असत वर्मन ने काश्मीर का दौरा किया था तथा उसके इस दौरे के समय कश्मीर पर अनंत देव के पुत्र कलश का शासन था। राजतरंगणी में असत को चम्पा अथवा चम्बा का राजा दर्शाया गया है। इस समय भी कश्मीर के राजा द्वारा चम्बा सहित विभिन्न पहाड़ी रियासतों पर अपने आधिपत्य का दावा किया गया तथा ऐसा प्रतीत होता है कि चम्बा सहित अनेक पहाड़ी रियासतों ने इस दावे को स्वीकार भी किया। यह मत स्वीकार करने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि चम्बा के राजा सहित अन्य अनेक पहाड़ी शासक इस समय कश्मीर के दरबार में गए। यदि उन्हें कश्मीर का आधिपत्य स्वीकार न करना होता तो उनके द्वारा सम्बंधित दरबार में हाजरी भरने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। जो ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध होते हैं उनसे ऐसा प्रतीत होता है कि कश्मीर के शासक अनंत देव द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों पर आक्रमण किए जाने के बाद चम्बा लगभग ऐसी रियासत बन गई थी जिसे कश्मीर का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ रहा था।

1105 ई0 में जसत वर्मन चम्बा का शासक बना। चम्बा से जुड़ी ऐतिहासिक सामग्री में इस शासक के बारे कोई भी जानकारी उपलब्ध नहंीं होती है। राजतरंगणी में इस शासक का नाम उपलब्ध है। इस शासक के काल का एक प्रस्तर अभिलेख उपलब्ध हुआ है जोकि पांगी के लुज नामक स्थान में मिला है तथा इसकी तिथि 1105 ई0 बनती है। इसी ईसवी को सम्बन्धित राजा के गद्दी में बैठने का वर्ष स्वीकार किया गया है। जसत वर्मन के बाद ढाल वर्मन चम्बा का अगला शासक बना। ऐसा माना जाता है कि ढाल वर्मन जसत वर्मन का भाई था तथा उसका शासनकाल सीमित अवधि तक ही रहा।

ढाल वर्मन के बाद 1120 ई0 में उदय वर्मन चम्बा राजवशं का अगला शासक बना। यद्यपि उदय वर्मन का नाम वंशावली में जसत वर्मन के बाद पांचवें स्थान पर मिलता है परन्तु इसे ढाल वर्मन के बाद आगामी शासक स्वीकार किया गया है। उसके शासनकाल में कश्मीर के राजवंश में सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा था। इस शासनकाल में कश्मीर के सुस्सल को अपना समर्थन दिया गया। सुस्सल को चम्बा राजवंश से सम्बन्ध रखने वाली दो राजकुमारियां विवाहित थीं जिन्हें उसकी 1128 ई0 में मृत्यु होने पर सती होना पड़ा। इन राजकुमारियों का नाम देव लेखा और तारा लेखा था।

उदय वर्मन के बाद चम्बा की गद्दी पर सत्तारूढ़ होने वाले शासकों में ललित वर्मन, विजय वर्मन, वैरासी वर्मन, माणिक्य वर्मन, भौट वर्मन, आनन्द वर्मन, गणेश वर्मन शामिल हैं जिनकी शासन अवधि लगभग 1130 ई0 से लेकर 1512 ई0 तक स्वीकार की जाती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पानीपत की ऐतिहासिक लड़ाई के बाद 1526 ई0 में भारत में मुग़ल+ों ने अपना शासन स्थापित कर लिया था। 1559 ई0 में प्रताप सिंह वर्मन चम्बा का शासक बना तथा वह मुग़ल+ बादशाह अकबर का समकालीन रहा है। उसके बाद 1586 में वीर वाहन, 1589 ई0 में बलभद्र वर्मन चम्बा का शासक बना। बलभद्र बादशाह जहांगीर का समकालीन रहा है।

अकबर वह प्रथम मुग़ल बादशाह माना जा सकता है जिसने पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों के शासकों को अपना आधिपत्य स्वीकार करवाया। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि अकबर अपने शासन के आरम्भिक वर्षों में ही हिमाचल के क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल हो गया था। उसने न केवल पहाड़ी क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करके यहां के शासकों को अपना आधिपत्य स्वीकार करवाया अपितु उसने अनेक पहाड़ी राजाओं को अपना विश्वासपात्र भंी बनाया । यद्यपि अकबर के शासन काल के आरम्भ में ही पहाड़ी क्षेत्रों पर उसके द्वारा प्रभाव स्थापित करने के तथ्य को हम नकार नहीं सकते परन्तु हमें यह स्वीकार करने में भी कोई कठिनाई प्रतीत नहीं होती कि अकबर का आधिपत्य स्वीकार करने पर भी इस समय कांगड़ा दुर्ग और सम्बन्धित क्षेत्रों पर कटोच राजवंश का ही अधिकार था तथा अन्य अनेक पहाड़ी रियासतों की स्थिति भी यही थी। चम्बा भी ऐसी पहाड़ी रियासत रही है जिसे मुग़ल बादशाह अक़बर के समय से ही मुग़लों का प्रभाव स्वीकार करना पड़ा।

बादशाह अकबर अपने शासन काल के प्रथम वर्ष में शेरशाह सूरी के भतीजे सिकन्दरशाह सूरी का पीछा करते हुए धमेड़ी तक पहुंच गया था। सिकन्दरशाह सूरी सरहिन्द के निकट मुग़ल सेना से पराजित होने के कारण स्वयं को इस सेना से बचाता हुआ तत्कालीन पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों में चला आया था। इस अभियान की अवधि में मुग़ल सेना ने तीन मास धमेड़ी में शिकार आदि मनोरंजन करने के लिए व्यतीत किये ।

धमेड़ी में अनेक पहाड़ी राजाओं ने बादशाह अक़बर से भेंट कर उसके प्रति मान व्यक्त किया। इन राजाओं ने अक़बर का आधिपत्य भी स्वीकारा। अकबर से भेंट करने वाले राजाओं में कांगड़ा का तत्कालीन राजा धर्म चन्द भी सम्मिलित था जो बादशाह से भेंट करने वाले राजाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहाड़ी शासक था। ऐसा भी स्वीकार किया जाता है कि चम्बा राजवंश के शासक ने भी धमेड़ी में बादशाह अकबर से भेंट की थी।

अकबर के 35वें शासन वर्ष अर्थात 1590ई. में अनेक पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों के विरुद्ध विद्रोह किया। कांगड़ा के राजा विधि चन्द सहित इस विद्रोह में जो अन्य पहाड़ी राजा सम्मिलित हुए उनमें मऊ के राजा बासू, मनकोट के राजा प्रताप, जम्मू के राजा परस राम के अलावा सुकेत, मण्डी और सीबा आदि पहाड़ी रियासतों के राजा भी सम्मिलित थे।

इन पहाड़ी राजाओं ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए संयुक्त सेना का गठन किया। विद्रोही राजाओं की संयुक्त सेना में एक लाख पैदल सैनिक और दस हजार घुड़सवार थे । उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इन क्षेत्रों के राजाओं द्वारा संयुक्त होकर विद्रोह करने की घटना कोई ऐसी सामान्य घटना नहीं थी जिसकी मुग़ल दरबार उपेक्षा करता।

पहाड़ी राजाओं का विद्रोह बढ़ जाने की स्थिति में मुग़लों के लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होना स्वाभाविक था। इसके अतिरिक्त विद्रोह से यह स्पष्ट था कि कांगड़ा सहित अनेक पहाड़ी राजा मुग़लों को चुनौती दे रहे हैं जो उनका आधिपत्य स्वीकार करते थे। पहाड़ी राजाओं का विद्रोह दबाने के लिए शाही दरबार द्वारा लाहौर से सेना नियत की गई। इस सेना का नेतृत्त्व अकबर के भाई जैन ख़ान कोका ने किया । कूच करके मुग़ल सेना पठानकोट पहुंची और इस स्थान से सेना कहलूर के क्षेत्रों की ओर बढ़ी। मुग़ल सेना ने सतलुज नदी के किनारे अपने शिविर लगाए ।

विद्रोही पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना मुग़लों का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी। राजाओं को यह आशंका नहीं थी कि उनके विद्रोह की सूचना मिलने पर उनके विरुद्ध मुग़ल सेना तत्काल रवाना कर दी जाएगी। उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना और मुग़ल सेना के मध्य संघर्ष नहीं हुआ। पहाड़ी राजाओं ने मुग़ल सेना के पहुंच जाने पर संघर्ष करने की अपेक्षा मान व्यक्त कर संघर्ष को टाल दिया। सतलुज नदी के किनारे जैन ख्+ाान कोका से सभी विद्रोही पहाड़ी राजा भेंट करने के लिए उपस्थित हुए । इन राजाओं ने मुग़ल सेनापति को हाथी तथा अन्य जानवर भेंट स्वरूप प्रदान किए । विद्रोही राजाओं में चम्बा का शासक शामिल था अथवा नहीं, इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। चम्बा सहित अनेक अन्य पहाड़ी रियासतें किसी न किसी रूप में आगामी करीब दो शताब्दियों तक मुग़लों का आधिपत्य स्वीकार करती रहीं तथा इस अवधि में इन रियासतों में समय-समय पर परस्पर संघर्ष भी होता रहा।

जहांगीर के शासनकाल में पहाड़ी क्षेत्रों पर मुग़लों द्वारा किए गए अभियानों में चम्बा रियासत भी किसी न किसी रूप में जुड़ी रही है। बादशाह जहांगीर के शासन काल में जब कांगड़ा के दुर्ग पर अधिकार करने के लिए सेना नियत की गई तब यद्यपि चम्बा रियासत का उस अभियान में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं रहा है। परन्तु उपलब्ध सामग्री की विवेचना से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि इस अभियान के समय मुग़लों के विरूद्ध बग़ावत होने की स्थिति में बाग़ी राजाओं द्वारा समय-समय पर चम्बा रियासत के अन्तर्गत आने वाले दुर्गो में शरण ली गई तथा चम्बा मुग़लों के विरूद्ध नूरपुर जैसी पहाड़ी रियासत के राजाओं का शरण स्थल बना रहा।

कांगड़ा पर आक्रमण करने के लिए प्रथम नियुक्त मुग़ल सेनापति मुर्तज+ा खां था। बादशाह जहांगीर ने अप्रेैल 1615 ई. में उसे कांगड़ा का दुर्ग विजय करने के आदेश दिये। जहांगीर अपने आत्मचरित तुजक-ए-जहांगीरी में लिखता है- दो अपै्रल 1615ई. मुतर्+जा खां को कांगड़े के दुर्ग पर अधिकार करने के लिए जाने की आज्ञा दी, जिसके समान अन्य कोई दुर्ग पंजाब के पार्वत्य प्रान्त में नहीं-या पूर्ण विश्व में नहीं.....व हमने मुर्तज+ा खां को विदा करते समय एक विशेष हाथी साज सहित प्रदान किया ।

इस दुर्ग को विजय करने के लिए भेजे जाने वाले मुग़ल अधिकारियों में राजा सूरजमल को भी नियुक्त किया गया। राजा सूरजमल पहाड़ी रियासत नूरपुर से सम्बन्धित था तथा अपने पिता की मृत्यु के पेश्चात्‌्‌ यहां का शासक बना था।